...

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वो पगली
वो पगली""""""
हर मसले पे मुज़से बात क़िया करती थी ।
सच पे मेरा साथ ओर जुठ का
पुर ज़ोर विरोध किया करती थी

मगर जब भी बातो ही बातो मे ""
जिक्र वफा का होता
तो वह खामोश ही रहा करती थी।
कुछ ईस तरह से वो पगली
मेरे साथ रहा करती थी।

दिल लगाने से डरती थी
या फिर दिललगी से डरा करती थी।
वक़्त उसके साथ कभी कटता नही""?
मानो बस थमसा जाता था,
वो कुछ ईस मासूमियत से बाते किया करती थी।
कुछ ईस तरह से वो पगली
मेरे साथ रहा करती थी।

वो घुट घुट के अन्दर से इतना टुट चुकी थी"
क़्या दर्द था उसे कभी मे वाकिफ ही ना हुआ।
मेरी हर सवाल को वो तो बस
कल पे छोड़ दिया करती थी।
कुछ ईस तरह से वो पगली
मेरे साथ रहा करती थी।

कभी मेरे हाथो को थामती,
कभी मुजको वो भीड़ मे भी डाट देती थी ।
जब भी वो मेरे आंखो मे देखती
पहरो बस देखा ही करती थी,
आखिर जमाना क़्या सोचेगा
इस बात की फिक़्र वो कभी नही करती थी।
कुछ ईस तरह से वो पगली
मेरे साथ रहा करती थी।

एक रोझ कहने लगी मे तुम्हे कुछ देना चाहती हू।
मे ने कहा जो चाहे दो उसने एक नाम वो दिया, ""सोज़""
मेने पुछा मायने, हस कर बोली उम्र लग जाएगी।
तुम्हारे नाम मे ही मेरे नाम की झलक नज़र आएगी।
कुछ ईस तरह से वो पगली
मेरे साथ रहा करती थी।

बातो ही बातो मे उसने मेरा हाथ थाम लिया ,
अब डर लगता जिन्दगी से""
कोई सीकवा नही किसी से ""
इतना कह कर वो नीढाल हो गई ""
चन्द उखड़ी सासे बची थी वो भी थम गई,,
कुछ ईस तरह से वो पगली
मेरे साथ रहा करती थी।

जाते जाते जाने कितने सवालात छोड़ गइ ,
मे हम राज रहा- हमनवा रहा- हमराह रहा ,
बस मलाल इतना रहा-
सोज़-ए-हयात मे उसके शरिक बनके ना रहा।
सोज़
© jitensoz