" बचपन की कुछ यादें और मेरा गांव "
अब वक्त किसे कि याद करे
उन भूली बिसरी बातों को
उन रिश्तों उन जज्बातों को
उन मीठी मीठी यादों को
जब रात होते ही दादी नानी से किस्से कहानियाँ सुनते थे
उनको शक न हो सोने का, हम हरदम हामी भरते थे
जब सोने से पहले हम छत को रोज़ भिगोया करते थे
बिस्तर पर लेटे लेटे कुछ ख़्वाब पिरोया करते थे
जब गरम दोपहर बागों में हम आम तोड़ने जाते थे
जब पापा से छुपकर ट्यूबवेल से नहाकर आते थे
पापा को मत बताना,हम मम्मी को कितना मनाते थे
जब स्कूलों के रास्ते पत्थर को लात मार मारकर घर तक ले आते थे😄
जब तितली के पंखों में धागे बांध उड़ाते थे
जब गुल्ली- डंडा,क्रिकेट कब्बड्डी कंचे खेले जाते थे
जब दुर्गा पूजा देखने हम दूर दूर तक जाते थे
जब रुपये इकठ्ठा कर stumper की गेंद मंगायी जाती थी
टूर्नामेंट खेलने के लिए एक टीम बनाई जाती थी
क्रिकेट का खुमार अलग...
उन भूली बिसरी बातों को
उन रिश्तों उन जज्बातों को
उन मीठी मीठी यादों को
जब रात होते ही दादी नानी से किस्से कहानियाँ सुनते थे
उनको शक न हो सोने का, हम हरदम हामी भरते थे
जब सोने से पहले हम छत को रोज़ भिगोया करते थे
बिस्तर पर लेटे लेटे कुछ ख़्वाब पिरोया करते थे
जब गरम दोपहर बागों में हम आम तोड़ने जाते थे
जब पापा से छुपकर ट्यूबवेल से नहाकर आते थे
पापा को मत बताना,हम मम्मी को कितना मनाते थे
जब स्कूलों के रास्ते पत्थर को लात मार मारकर घर तक ले आते थे😄
जब तितली के पंखों में धागे बांध उड़ाते थे
जब गुल्ली- डंडा,क्रिकेट कब्बड्डी कंचे खेले जाते थे
जब दुर्गा पूजा देखने हम दूर दूर तक जाते थे
जब रुपये इकठ्ठा कर stumper की गेंद मंगायी जाती थी
टूर्नामेंट खेलने के लिए एक टीम बनाई जाती थी
क्रिकेट का खुमार अलग...