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काले कोस

...मामाजी ! चिंटू की शादी में आना है ,आप जिमी की शादी में भी नहीं आए थे ! और न ही हमारे घर के किसी भी फंक्शन में आए हैं मुझे याद नहीं आज तक !
पापा ,मम्मी के चले जाने के बाद तो तकरीबन भूला ही दिया है आपने ,ना कोई चिट्ठी ,आमंत्रण ,फोन या संदेश कोई आता है आपका हम तक , हमसे क्या भूल हुई ,बताइये न ?

मैंने कहा नहीं नहीं कोई भूल नहीं हुई बस दूर बहुत पड़ता है लगातार 12 घण्टे बैठक नहीं हो पाती है ,फिर एक जन और चाहिए साथ में आने जाने को ,
एक से भले दो ,काले कोस के सफ़र में !
काले कोस कहकर आप टाल नहीं सकते और यह निर्णय भी तो आप लोगों का ही तो था दूर ब्याहने का ,हमारा क्या कुसूर ! आना ही होगा आपको ,मना नहीं चलेगा ,आपका आशीर्वाद चाहिए ही चाहिए , आइये बराबर आइये ,बहाने न बनाइये । 7,8,9 फरवरी भूलना नहीं !

(अब आग्रह उलाहना का रूप धरने लगा था )

मैंने रुख बदलते हुए कहा -हाँ हाँ क्यों नहीं ? देखते हैं इन तारीखों में छुट्टी मिल गई तो बराबर आएगे ।
ये बराबर क्या हर हाल में आना है आपको !
हाँ हाँ जरूर आएंगे ।
मैं पीले चावल और पत्रिका रखकर आपको सादर आमंत्रित कर रहा हूँ और हाँ आप दीदी से फोन पर बात कर लीजिए ।
(वीरेन्द्र ने पत्रिका रखते हुए उक्त वार्तालाप को विराम देते हुए कहा )

हाँ बोलिए शोभा ,सब ठीक तो है ना ?
हाँ सब ठीक है और आप कैसे हैं ,मैंने कहा सब राजी खुशी है ।वह बोली जी बहुत अच्छा !
मैं व्हाट्स ऐप पर भी पत्रिका डाल रही हूँ यही नम्बर सही है ना और जब आप यहाँ पधारे तो इस नम्बर पर बात कर लीजिए आपको सपरिवार विवाह स्थल तक लाने का जिम्मा हमारा जरूर कृपा कीजिएगा ।
(औपचारिकताओं और थोड़ी नानुकूर के बाद अंततः मैंने विवाह में जाने की अनुमति दे दी )
एक तो मौसम वो भी कँपकँपाती सर्दी का ,दूसरा जाना था काले कोस ,
(काले कोस मतलब बहुत दूर रिश्तों में भी अबोलापन हो , आना जाना न हो ,हाल चाल कुशल क्षेम पूछना ,संवेदना न हो तो पास रहकर भी दूरिया बढ़ जाती है कोसो दूर चला जाता है अपनापन यही है काले कोस का भाव भी )

हाँ यह सगा ही तो रिश्ता है न हमारा ।और जाना भी चाहिए
रिश्तों की प्रगाढ़ता ,सामाजिकता ,अपने सम्बन्धियों से मिलना सभी अटके ,अंजान ,वाँछित कार्य सध जाते हैं एक दूसरे के उत्सव,ग़म आदि में समय समय पर जाते रहने से ।
फिर मेरा मन अस्थिर हो जाता है सोचता है जब भी हमारे यहाँ कोई कार्य होता है तब ये लोग नहीं आने का कोई भी अकाट्य बहाना बना देते हैं और हम लोगों को ऐसे आग्रह उलाहना से आने को मजबूर कर देते हैं !

निर्धारित दिनांक और दिन को,पूरी रात सफ़र कर, लम्बी दूरी तय कर उनके विवाह स्थल पर पहुँचते हैं । खूब गर्मजोशी से हमारा स्वागत होता है हम अभिभूत हो जाते हैं और सारी थकान रफूचक्कर हो जाती हैै ।जहाँ कालेकोस कहकर हम कोस रहे थे रिश्ते को ,देख रहे थे समय और धन को उड़ता हुआ ,
पर महसूस रहे थे एक जुड़ाव टूटते रिश्तों में ,अपनेपन का एहसास अंतर्मन में ,जा रहा था एक रास्ता संगम का,
और खुशी से दिल लिख रहा था -" दरकते मृतप्राय संबंधों में ,आत्मीय पुनर्जीवन की पावन मधुर दास्तान।"

© MaheshKumar Sharma
12/2/2023
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