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नवरात्रि नवदुर्गा: मां के नौ रूप
भारत पर्वों का देश है। यहां समय -समय पर अनेक पर्व मनाए जाते हैं।जो अंग्रेजी महीनों की अपेक्षा भारत में आने वाले मौसम और हिन्दी महीनों के अनुरूप होते हैं। प्रत्येक त्यौहार वर्ष में एक बार आता है लेकिन नवरात्रि पर्व जो मां भगवती को समर्पित है। वर्ष में दो बार आता है। प्रथम नवरात्र चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से प्रारंभ होते हैं। चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा ही हिन्दुओं का नववर्ष है। इस दिन से नया संवत्सर प्रारंभ होता है।यह नवरात्र चैत्र शुक्ल पक्षीय नवरात्र के नाम से विख्यात हैं।
द्वितीय नवरात्र आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से प्रारंभ होते हैं यह
शारदीय नवरात्र के नाम से जाने जाते हैं। यद्यपि इन नवरात्रों में जनमानस का झुकाव भगवान श्री राम की ओर भी रहता है।
नवरात्रि के नौ दिनों में मां के नौ रुपों की पूजा की जाती है। प्रथम दिवस मां शैलपुत्री देवी दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी देवी, तीसरे दिन मां चंद्रघंटा देवी, चतुर्थ दिवस मां कूष्माण्डा देवी, पंचमी को मां स्कंदमाता देवी, छठे दिन मां कात्यायनी देवी, सप्तमी को मां कालरात्रि देवी, आठवें दिन मां महागौरी देवी और नवम दिवस मां सिद्धिदात्री देवी की पूजा की पूजा होती है।
नवरात्रि में लोग उपवास रखते हैं। मां की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए मंत्रोच्चारण और पाठ करते हैं।सभी प्रकार के तामसिक भोजन का त्याग कर दिया जाता है
प्रथम दिवस मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। शैलपुत्री का अर्थ है पर्वत की पुत्री।
पूर्व जन्म में मां शैलपुत्री राजा दक्ष की पुत्री सती थीं। उन्होंने शिव जी से प्रेम विवाह किया था।राजा दक्ष शिव जी को पसंद नहीं करते थे, लेकिन सती के प्रेम के आगे राजा दक्ष को झुकना पड़ा और विवशता वश विवाह भी करना पड़ा।
एक बार शिव और सती पर्वत पर बैठे थे।उसी समय सती ने अनेक देवों और गंधर्वों को आकाश मार्ग से जाते हुए देखा उन्हें देख सती ने पूछा ये सब कहां जा रहे हैं। उत्तर में शिवजी ने कहा आपके पिता ने एक बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया है, ये सब वही जा रहें हैं। इस पर सती ने आयोजन में सम्मिलित होने की इच्छा जताई, किन्तु हमारे कारण उन्होंने आप को भी निमंत्रण नहीं भेजा। किन्तु प्रिय
वो हमारे पिता हैं, निमंत्रण देने और न देने का तो प्रश्न ही नहीं है।
शिव जी ने कहा प्रिया बिना बुलाए कहीं नहीं जाना चाहिए भले ही वो पिता का घर ही क्यों न हो। शिव जी के लाख समझाने पर भी सति अपने पिता के घर यज्ञ में सम्मिलित होने चलीं गईं। लेकिन वहां अपने पिता द्वारा शिव जी का अपमान वे सहन नहीं कर पाईं और उसी यज्ञवेदी में योगाग्नि से जल
कर भस्म हो गईं।
सति ने अगले जन्म में पर्वत राज हिमाचल और रानी मैनावती के घर पुत्री रूप में जन्म लिया और मां शैलपुत्री के रूप में विख्यात हुईं
माता शैलपुत्री नन्दी की सवारी करतीं हैं इनके दांएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प विराजमान है त्रिशूल पापियों का विनाश करता है और भक्तो को अभय प्रदान करता है।कमल ज्ञान का और शान्ति का प्रतीक है। इसीलिए इनकी पूजा अर्चना से ज्ञान में वृद्धि होती है और शान्ति की प्राप्ति होती है।
माता शैलपुत्री को लाल और पीला रंग प्रिय है। इसलिए इस दिन भक्तों को लाल या पीले रंग के वस्त्र धारण करने चाहिए। सफेद कनेर,लाल गुड़हल के फूल चढ़ाने से मां
विशेष प्रसन्न होती हैं। इस दिन मां को गाय के घी का भोग लगाना चाहिए।

जय माता की

© सरिता अग्रवाल