...

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मैं तुमसे फिर मिलना चाहूँगी...
मैं तुमसे फिर मिलना चाहूँगी...

जब झुर्रियाँ मेरी खूबसूरती को घटाने लगे
और चेहरे की चमक भी जाने लगे
तुम नजरों से तराशना उस वक़्त मुझे
मैं फिर गुलाबों की तरह खिलना चाहूँगी

मैं तुमसे फिर मिलना चाहूँगी...

जब मेरी बातें लोग अनसुनी करने लगेंगे
मेरे ख्यालात सबको पुराने लगने लगेंगे
तुम बुनना तब मेरे आँखों में कुछ ख्वाब
मैं फिर अपने ख्यालों को बदलना चाहूँगी

मैं तुमसे फिर मिलना चाहूँगी...

जब मैं जिंदगी का मतलब समझने लगूँगी
बड़ी-बड़ी बातों पर भी खामोश रहने लगूँगी
तुम देना तब मेरी सोच को एक नया आयाम
मैं फिर तुमसे किसी बात पर उलझना चाहूँगी

मैं तुमसे फिर मिलना चाहूँगी

जब जीवन के आखिरी कुछ वसंत बचे हुए होंगे
फूलों की खुशबू और खूबसूरत रंग भी लिए होंगे
तुम लगाना मेरे बालों में एक प्यारा-सा गुलाब
मैं फिर से तुम्हारे मोहब्बत के रंग में रंगना चाहूँगी

मैं तुमसे फिर मिलना चाहूँगी..

© आँचल त्रिपाठी