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सिर्फ भूख
भूख! भूख! भूख!
सिर्फ भूख!
भूख के लिए मानव क्या क्या कर डालता है। इसका कोई पता नहीं है। भूख की हड़ताल में मानव आकाश पाताल एक कर देता है।

लालची, आलसी, स्वार्थी.................जो क्षुधा की अग्नि को बुझाने के लिए कठिन परिश्रम कर डालता है। उस समय सूर्य चन्द्रमा और तारों में अंतर नहीं बता सकता।

परंतु भूख बुझाने के बाद आलस्य की निद्रा में मग्न होकर अच्छा बुरा सपने देखते हुए
कभी हंसता है तो कभी मुस्कुराते हुए क्षण भर में यहाँ कभी वहाँ पहुँच जाता है।

भोजन से उदर परिपूर्ण होने पर आलस्य की निद्रा में मग्न..... क्षुधा में आग लगते ही उठकर बैठ जाता है उसे अन्य नहीं सूझती।

सिर्फ एक बात!
क्षुधा में लगी अग्नि!
मरभुख्ख! लालची! हमेंशा क्षुधा की अग्नि को बुझाकर आलस्य की निद्रा में खो जाता है।
आग लगते ही पुनः
भोजन! भोजन! भोजन!
सिर्फ भोजन!चिल्लाना प्रारंभ कर दिया!
जब तक भोजन नहीं मिल जाता अपने स्वार्थ के लिए कुछ न कुछ तो करेगा ही
क्षुधा की अग्नि को बुझाने के लिए इधर उधर घूमता रहेगा.....
जितनी तेजी से पेट में चूहे कूदने प्रारंभ करेंगे उतनी ही तेजी से परिश्रम होने लगेगा।
चाहे उस समय आकाश से पाताल ही क्यों न जाना पड़े।
मरभुख्ख! केवल क्षुधा की अग्नि के लिए ही कार्य करता है......
कितना परिश्रम! कितनी कठिनाई! किशान खेती कर रहा है, ग्वाला दूध दुहाई कर बेच रहा है, कोई चाय की दुकान, कोई कपड़े की दुकान, कोई ईमानदारी से तो कोई बेइमानी से सभी अपनी अपनी क्षुधा की अग्नि को बुझाने के लिए लगे पड़े हैं परंतु बहुत से ऐसे भी हैं। जो क्षुधा की अग्नि लगने पर भी कुछ नहीं करते भूख के मारे मर जाते हैं। हाथ पैर रहने के बावजूद भी कुछ नहीं करते।
ऐसे मरभुख्ख को तो जन्म लेने से पहले ही मर जाना चाहिए।

जो स्वयं की भूख नहीं मिटा सकता क्या वह औरों की खाक मिलाएगा........
ऐसा व्यक्ति संसार में जन्म लेकर भी सुख का भागीदार नहीं होता।

© Neha