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" एक था फ़किर और एक थी, उसकी- रानी! "
एक था फ़किरा और
एक थी, उसकी- रानी! "
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" एक फ़किर ने कहा था f#@kira कभी
अपनी रानी से k सुन कोई हमसफ़र ऐ साथी से
के 'गौरा बिन बुलाए ऊ नईहर न जईओ हंसिनी
होत न आदर जहां न कोई k सम्मान ऐ मेहमान'
मगर होनी जो लिख चुका था विधाता तकदीर
उसे कोई कैसे भला टाल सकता था ।
जिते जी व उस विधवा की तरह जी रही थी रूह
रूहानी कोई जो आदम ऐ राम woMen कोई
जो रीढ़ की हड्डी से उस जादुगर ने कोई सुन
अपने ही जिस्म से जैसे कोई हरदम फरिश्ता
नारायण और जैसे कोई लक्ष्मी एक सतयुग
Eden Garden कोई Heaven Paradise
स्वर्ग न जहां कोई उसके वो सातवां आसमान
से इस धरती के भू-मंडल में
एक Fallen Angel F#@KiRa
फ़रिश्ता था जो कभी फ़किरा
कैसे सुरू हुई बिच मझधार कोई कहानी
रानी थी जो कोई दक्ष प्रजापति की तराजू
कुंडली ही में ही अपनी भोले भंडारी...