"बेटी बचाओ अभियान ".. कहाँ तक सफल..
बेटियां पढ़ाओ... बेटियां बचाओ..
पर क्या बच पायी बेटियां..?
चलो एक किस्सा सुनाती हूँ..लगभग सात साल पहले का...मेरी एक ही बेटी थी 2 साल की और मैंने तय कर लिया था कि बस एक ही बेटी रहेगी.. उससे इतना ज्यादा प्यार करते हैं कि और बच्चे की आस नहीं थी।
हमारे घर के पास एक बुजुर्ग दम्पति रहते थे, उन की उम्र लगभग 60,65 के करीब होगी.. जोड़ों में दर्द रहता, कमर में दर्द रहता.. फिर भी अकेले अपना समय निकाल रहे थे..
मैं तमिलनाडु में रहती हूं, उस कॉलोनी में वही बस एक हिंदी घर था, धीरे धीरे उनसे बातचीत होने लगी..
एक रोज उनसे मैंने पूछा कि वो अकेले क्यूं रहते हैं.. तब पता चला कि उनकी एक ही बेटी है, जो दो तीन महीने में एक बार आती है, और मिलकर चली जाती है..उसके सासुराल वाले बार बार आने नहीं देते।
फिर मैंने पूछा उसके बच्चे भी होंगे, जवाब मिला तीन है.. मैंने कहा एक को अपने पास रखलो.. फिर वही जवाब कि उसके ससुराल वालों को एतराज..
फिर पूछा कि...अपके घर का काम कौन करता है, जवाब मिला धीरे धीरे कर लेते हैं.. और "मन लग जाता है"... वह भी लगा लेते हैं...
उनके एक एक जवाब से मेरा मन घबरा रहा था.. उनकी हालत पर तरस भी आ रहा था.. और डर भी बैठा जा रहा था कि भविष्य में मुझे ऐसी स्थिति का सामना न करना पड़े..
मेरी बेटी को अपने अकेलेपन से निजात के लिए अपने पास रख नहीं सकूंगी.. यदि घर जमाई न मिला तो बेटी कि ज़िन्दगी ख़राब.. बस जेहन में यही आ रहा था कि परिवार बढ़ाना चाहिए।
एक साल बाद वो घर खाली करके भी चले गए, कहाँ गए पता नहीं.. सात साल हो चुके है.. आज भी जब याद करती हूं तो यही सोचती हूं.. कि जहाँ भी रहें,वो खुश रहें..
पर एक बात अभी भी है बूढ़े माँ बाप जिनका और कोई सहारा नहीं... क्या बेटी उन्हें अपने साथ नहीं रख सकती.. और अगर यही सिस्टम रहा तो.. बेटी बचाओ अभियान कभी सफल न हो सकेगा...
© अनकहे अल्फाज़...
#betiyan #writco #writcoapp #writers #truth
पर क्या बच पायी बेटियां..?
चलो एक किस्सा सुनाती हूँ..लगभग सात साल पहले का...मेरी एक ही बेटी थी 2 साल की और मैंने तय कर लिया था कि बस एक ही बेटी रहेगी.. उससे इतना ज्यादा प्यार करते हैं कि और बच्चे की आस नहीं थी।
हमारे घर के पास एक बुजुर्ग दम्पति रहते थे, उन की उम्र लगभग 60,65 के करीब होगी.. जोड़ों में दर्द रहता, कमर में दर्द रहता.. फिर भी अकेले अपना समय निकाल रहे थे..
मैं तमिलनाडु में रहती हूं, उस कॉलोनी में वही बस एक हिंदी घर था, धीरे धीरे उनसे बातचीत होने लगी..
एक रोज उनसे मैंने पूछा कि वो अकेले क्यूं रहते हैं.. तब पता चला कि उनकी एक ही बेटी है, जो दो तीन महीने में एक बार आती है, और मिलकर चली जाती है..उसके सासुराल वाले बार बार आने नहीं देते।
फिर मैंने पूछा उसके बच्चे भी होंगे, जवाब मिला तीन है.. मैंने कहा एक को अपने पास रखलो.. फिर वही जवाब कि उसके ससुराल वालों को एतराज..
फिर पूछा कि...अपके घर का काम कौन करता है, जवाब मिला धीरे धीरे कर लेते हैं.. और "मन लग जाता है"... वह भी लगा लेते हैं...
उनके एक एक जवाब से मेरा मन घबरा रहा था.. उनकी हालत पर तरस भी आ रहा था.. और डर भी बैठा जा रहा था कि भविष्य में मुझे ऐसी स्थिति का सामना न करना पड़े..
मेरी बेटी को अपने अकेलेपन से निजात के लिए अपने पास रख नहीं सकूंगी.. यदि घर जमाई न मिला तो बेटी कि ज़िन्दगी ख़राब.. बस जेहन में यही आ रहा था कि परिवार बढ़ाना चाहिए।
एक साल बाद वो घर खाली करके भी चले गए, कहाँ गए पता नहीं.. सात साल हो चुके है.. आज भी जब याद करती हूं तो यही सोचती हूं.. कि जहाँ भी रहें,वो खुश रहें..
पर एक बात अभी भी है बूढ़े माँ बाप जिनका और कोई सहारा नहीं... क्या बेटी उन्हें अपने साथ नहीं रख सकती.. और अगर यही सिस्टम रहा तो.. बेटी बचाओ अभियान कभी सफल न हो सकेगा...
© अनकहे अल्फाज़...
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