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नवरात्रि: नवदुर्गा: मां का तीसरा रूप
नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा होती है। शिव पार्वती से जब विवाह करने आए तो पार्वती की मां मैना देवी उनके अमंगलकारी रुप को देख कर बेहोश हो गई। शिव जी के गले में सर्पों की माला थी।सिर पर जटा - जूट था,शरीर पर भस्म रमी थी। बाराती भूत प्रेत और पिशाच थे। अपनी माता को इस हाल में देख पार्वती जी ने शंकर जी से याचना की कि वह सुन्दर राजकुमार का वेश धारण करें।
तब पार्वती जी ने भी मस्तक पर घण्टे के आकार का चन्द्रमा धारण किया, तभी से पार्वती जी का ये रुप चंद्रघंटा कहलाया।
मां का ये रूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है। मां का यह रूप इहलोक और परलोक दोनों में कल्याणकारी है
मां का ये रुप मनुष्य में साहस और आत्मविश्वास का संचार करता है।जिस व्यक्ति में साहस की कमी है वह दूसरों के सामने अपनी बात मजबूती से नहीं रख पाता उसे मां चंद्रघंटा देवी की उपासना करनी चाहिए।
यह पार्वती जी का विवाहित रुप है।ये निडरता और साहस का प्रतीक है। मां चंद्रघंटा का शरीर सोने के समान चमकीला है
इनके तीन नेत्र हैं,दस भुजाएं हैं।बांए भुजाओं में त्रिशूल गंदा, तलवार और कमंडल है, पांचवां हाथ वरद् मुद्रा में है। दाहिनी भुजाओं में जपमाला तीर थनुष और कमल पुष्प सुशोभित हैं पांचवां हाथ अभय मुद्रा में है ‌
अग्नि जैसे वर्ण वाली, ज्ञान से परिपूर्ण ये देवी चंद्रघंटा के अतिरिक्त रणचंडी और चंडिका नाम से भी जानी जाती हैं।ये सिंह
पर सवारी करतीं हैं ये देवी युद्ध के लिए सदा तत्पर रहती है इनके घंटे के भयानक नाद से ही युद्ध में अनेक दैत्य और राक्षस काल के ग्रास बन गये। यद्यपि देवी चंद्रघंटा दैत्यों के प्रति अति निर्दयी हैं तथापि भक्तो के प्रति अत्यंत दयालु हैं। इन्हें भूरा और सुनहरा रंग (सिंह का रंग) विशेष प्रिय है। इन्हें केसर गंगाजल और केवड़ा से स्नान कराना चाहिए
मां चंद्रघंटा को पीले फूल और चमेली के फूल प्रिय हैं । मां चंद्रघंटा को दूध,खीर, पंचामृत और शहद का भोग लगाया जाता है।
ये शुक्र ग्रह को नियंत्रित करतीं हैं। मां चंद्रघंटा जीवन से सारी नकारात्मक उर्जा समाप्त कर देती हैं,ये पापों और कष्टों से छुटकारा दिलवाती है ये सभी के जीवन में सद्भाव बनाए रखती हैं।

जय माता की
© सरिता अग्रवाल