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दुख की घड़ी।।।🥺
कहानी उस समय की है जब लोग अपना जीवन कितना दुख से व्यतित करते थे।
एक परिवार था जिसमे माता पिता और उनके आठ बच्चे थे।ये परिवार अपने जीवन को व्यतित करने के लिए अपने गांव ग्राम सरगाा से दूसरे जगह शहर जाते थे।तो माता पिता जाते दूसरे शहर और उनकी बड़ी बेटी बाकी भाई बहन का देख रेख करती और अपना स्कूल जाती।उनका जीवन इतना दुखमई था। सूबा खाना खाते साम भूखे पेट सोते तो कभी कभी मांड पानी ही पि के सो जाते आठों भाई बहन।पहेने को कपड़ा नहीं होता था उसी दिन धोते और सूखा के फिर पहनते।और जिस दिन खाने को नी होता तो सूबा खेत में काम करने को जाते उसे जो धान मिलता उसको चावल बनाते फिर पक्का के खाते । अयशा करते हुए बड़े हो जाते है ।खाने को नहीं मिला पहाने को नहीं मिला पर कोई भी भाई बहन अनपढ़ नही थे ।जैसे भी अपने गरीबी स्थिति से भी पड़े लिखे । पहले के लोग दुख को बड़ा नही मानते थे दो पल की खुशी को बड़ा मानते थे।खुशी उनके लिए बहुमूल्य थी।और उस दो पल की खुशी में संतुष्ट रहते थे।
moral of story: sadness and happiness is a part of life, accept it and live it 💟 💯