...

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ज़िंदा होने की कोशिश
अंधेरे और सीलन भरे,
कमरों से झांकती उनकी सूनी आंखें..
कि शायद कोई सहारा मिल जाए..
कि शायद कोई फ़रिश्ता ही आ जाए,
जो उन्हें इस कब्रिस्तान से बाहर लेे जाए..
जहां दफ़न है न जाने कितनी ज़िंदा लाशें..
हां अब ज़िंदा लाशें ही तो हैं वह सब...
जिनका अपना कुछ भी नहीं..
शरीर तो अपना था ही नहीं..
आत्मा भी तो मर चुकी अब...
फिर भी एक बार ज़िंदा होने की कोशिश बाकी है,
सांसों ने साथ जो न छोड़ा अब तक..
हर घुटनभरी काली अंधेरी रात के बाद,
सुबह के उजाले से जन्म लेती एक नई आस,
और फिर से ज़िंदा होने की अंतहीन कोशिश में..
उस अंधेरे और सीलन भरे कमरों से,
बाहर झांकती और
ज़िन्दगी को तलाशती उनकी आंखें।

(छाया स्रोत: गूगल)