...

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ये कौन है मुझमे?
ये कौन है मुझमे जो रोकता है मुझे दिखावे का हसने से। जो कहता है कि क्यूँ दिखावा करती हो दुनिया को ना तुम्हारे हसने से फर्क पड़ता ना रोने से।तो क्यूँ करती हो ये।
जो कहता तुम तो रात भर रोइ थी ना। तुम्हारी सिसकियां अभी भी कानो में गूंज रही हैं मेरे।
तुम्हारी तड़प, तुम्हारा दर्द सब समाया है मुझमे।
ये कौन है मुझमें जो डरता है मेरे भोलेपन से।
धीरे से समझाता है जो कुछ अतीत के पन्नों को खोलकर। दिखता है चाहते में छुपे झूठ और फरेब का चेहरा। कहता है मुझसे उलझना ना फिर तुम इनमे दुनिया फायदा उठाएगी तुम्हारा।
ये कौन है मुझमे जो डरता है मेरी दोस्ती से भी। फिर बताता है कुछ दुख भरे किस्से।
ये कौन है मुझमे जो हर वक्त मुझसे ही सवाल करता है। पूछता है और उलझा देता है। कहता है क्या गए वो लोग जो तुम्हारे हुआ करते थे। वो लोग जिनपर आंखे बंद करके भरोषा था तुमको।
ये कौन है मुझमें जो मेरे अकेलेपन पर हसता है। जो मेरा ही मज़ाक बनता है।
ये कौन है मुझमे......

© श्वेता श्रीवास