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सुनो ना
मैं बस भागकर तुम्हारे पास आना चाहती हूँ और चाहती हूँ की तुम्हें सामने पाते ही कसकर गले से लगा लूँ और कुछ देर यूँही गले से लगे रहूँ। फिर तुम से अपने दिल या दिमाग में चल रही हर चिंता, दर्द या परेशानी को ज़ोरों से बताते हुए सिसक-सिसककर रो दूँ।
चाहती हूँ कि मुझे चुप कराकर और मेरे आँसू पोंछकर तुम मुझे कहीं छिपा दो।
मैं हर दर्द, हर ग़म से दूर कहीं छिप जाना चाहती हूँ।
जहाँ तुम्हारे सिवा मेरे करीब कोई परिंदा भी ना आए।
हाँ! शायद मैं कायर हूँ, शायद डर गई हूँ या शायद मैंने हार मान ली है। मगर सच यही है की मैं इन परिस्थितियों से थक चुकी हूँ.. मुझे केवल सुकून चाहिए..
केवल सुकून!
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नदी में पैरों को डालकर बैठने पर पैरों को नदी की शीतलता महसूस होनी चाहिए ना!
सुबह-सुबह टहलने पर पंछियों की आवाज़ आनी चाहिए ना!
ऐसे ही ज़िन्दगी जीते हुए ज़िन्दगी का महसूस होना भी तो बहुत ज़रूरी है।
मैं बस थोड़ी देर ही सही मगर सुकून चाहती हूँ। भूल जाना चाहती हूँ क्या हुआ है, क्यों हुआ है..
मैं सुकून से भरी नींद सोना चाहती हूँ.. बस कुछ दिन जी भरकर सोते रहना।
कभी-कभी लगता है काश ज़िन्दगी वापस बचपन से शुरू हो जाए.. वहीं बचपन में पहुंच जाए बिल्कुल पहले की तरह। फिर जो हुआ है शायद उसे होने से रोक लूंगी या कुछ घटनाएं होने से पहले बदलाव कर दूंगी।
मुझे भी एक खुशियों से भरा हुआ जीवन चाहिए।
मुझे भी सुबह उठने और रात में सोने की वज़ह चाहिए।
ये बेवज़ह का जीवन नीरस है.. यूँ इतना दर्द सहन कर पाना नामुमकिन है।
सुनो..
तुम सुन रहे हो ना..?
तुम बस यूँही मुझे सुनते रहा करो.. मेरी बातों को सुनते हुए जब तुम 'हम्म' कहा करते हो तो अच्छा लगता है।
लगता है कोई तो है जो मुझे हमेशा सुनता है।
पता है क्या..
मैं कभी-कभी बेवज़ह ही तुमसे,
'सुनो ना..' बोल दिया करती हूँ..
फिर जवाब में 'हाँ' सुनकर,
यूँ तुम्हारा मेरे पास होना मुझे खुश करता है।
हाँ! मुझे कहना कुछ नहीं होता मगर मुझे लगते रहना चाहिए ना.. तुम यहीं हो।
यह बिल्कुल ऐसा है जैसे माँ के ना दिखने पर तुम ज़ोरो से 'मम्मी' कह उनको आवाज़ दिया करते हो.. और फिर उनकी 'हाँ' सुन 'कुछ नहीं' कह दिया करते हो।
तुम्हें भी केवल माँ की उपस्थिति चाहिए।
-रूपकीबातें
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