सुनो ना
मैं बस भागकर तुम्हारे पास आना चाहती हूँ और चाहती हूँ की तुम्हें सामने पाते ही कसकर गले से लगा लूँ और कुछ देर यूँही गले से लगे रहूँ। फिर तुम से अपने दिल या दिमाग में चल रही हर चिंता, दर्द या परेशानी को ज़ोरों से बताते हुए सिसक-सिसककर रो दूँ।
चाहती हूँ कि मुझे चुप कराकर और मेरे आँसू पोंछकर तुम मुझे कहीं छिपा दो।
मैं हर दर्द, हर ग़म से दूर कहीं छिप जाना चाहती हूँ।
जहाँ तुम्हारे सिवा मेरे करीब कोई परिंदा भी ना आए।
हाँ! शायद मैं कायर हूँ, शायद डर गई हूँ या शायद मैंने...
चाहती हूँ कि मुझे चुप कराकर और मेरे आँसू पोंछकर तुम मुझे कहीं छिपा दो।
मैं हर दर्द, हर ग़म से दूर कहीं छिप जाना चाहती हूँ।
जहाँ तुम्हारे सिवा मेरे करीब कोई परिंदा भी ना आए।
हाँ! शायद मैं कायर हूँ, शायद डर गई हूँ या शायद मैंने...