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प्रेम परमेश्वर का दिया बहुमूल्य धन है
प्रेम ही है जो आसमानों को जमीन से नदी को सागर से पंछी को वन से मछली को जल से दिन को रात से चांद को तारों से सूरज को रोशनी से और मानव को परमेश्वर से जोड़ कर रखता है

प्रेम हर धर्म समुदाय से अलग हटकर अपना मार्ग चुनता हैं और ये प्रेम ही है जो हर समुदाय को अपनी पनाह में लेता है तो ऐ मनुष्य तू बता!
क्या मानवता से प्रेम करना तेरे सुंदर मजहब ने तुझे नहीं सिखाया! मैं मानवता से प्रेम की बात करता हूं क्योंकि मेरे ईश्वर ने मेरे हृदय में प्रेम डाला! और मैंने अपने पैगंबर से दीन से मजहब से अपने मां बाप से और अपने गुरु और बड़े भाई बहनों से प्रेम करना सीखा है ! और कल आने वाली नस्लों को भी यही प्रेम उपहार में मैं दूंगा !

तो मेरे प्रिय, तू क्यों गलत मार्ग का राही बन कर संसार को नष्ट करता हैं क्या तूने अपने दिल को नही देखा जो प्रेम में डूबा है और प्रेम ही की खोज में है ! तो क्यूं ना तू अपने मस्तिष्क को आजाद कर दुनिया की जंजीरों से और प्रेम के सागर में डूब जा ! कि प्रेम ही वो कस्ती है जो तुझे उभार कर परमेश्वर तक ले जाएगी और इस फानी दुनिया में कुछ भी तो नहीं अपना, "सब फना है सिवाए प्रेम के,, ! ये प्रेम ही है जो सदा जीवित रहेगा !

नफरत की आग से बस कष्ट की ज्वाला ही उत्पन्न की जा सकती है पर प्रेम के पवित्र जल से बंजर में भी रंग बिरंगे फूल खिलाया जा सकता है

दर्द, ईर्ष्या, छल, कपट,, ये सब मार्ग प्रेम से दूर दुनिया में मगन रहने की वस्तु है खुद को आजाद कर, त्याग दे ईर्ष्या को और प्रेम का जाप अलाप कर ! और परमेश्वर के बनाए हुए हर प्राणी से प्रेम कर ! ये प्रेम ही तुझे सबसे अलग कर के तुझे रोशन करेगा ! और फिर तेरी रोशनी से एक नया चमन चमकेगा !

मैने प्रेम की वादी में कदम रखा है 'जहां सब है प्रेम में अमीर और ये वो दौलत है जो सदा मेरे साथ रहेगी ! और मेरी ये तमन्ना है कि तुम सब मेरे साथ प्रेम की वादी में मेरे साथ चलो!

© —-Aun_Ansari