“सात चक्कर”– एक काल्पनिक कथा
सब लोक का भ्रमण करते करते नारद जी जा पहुंचे नारायण के निकट। नारायण को मंद मंद मुस्कुराता देख नारद जी ने भी उच्च स्वरों में नारायण नारायण की माला जपी।
नारद जी का आगमन देख ध्यानभंग नारायण ने प्रणाम किया और फिर से धरती लोक की ओर देख स्मित करने लगे। नारद जी से रहा न गया और मन ही मन सोचा की ऐसी कोनसी माया ने प्रभु का ध्यान मेरी ओर से खींच लिया! धरती लोक पर स्वयं दृष्टि डाली और देखा तो कोई मायावी व्यापारी लोगो को अपनी मीठी चालक बातों से लुभा कर उनका धन ऐठ रहा था।
अब नाराद जी ठहरे मिजाज वाले। उनका समय कोई मनुष्य कैसे चुरा सकता है! इतना सोच नारद जी के मन में ईर्ष्या हुई और मन ही मन उस मनुष्य को सबक सिखाने का सोच लिया और लिया वचन कि,“ इस व्यापारी को छल इससे सब घन ले लुगा, और उनको दे दुगा जिसका है।” प्रभु नाराज जी की ओर देख मुस्कुराए और उच्चार किया , “नारद जी मैं आपको इस कार्य के लिए तीन साल का समय देता हु। किंतु नारद जी, आप अगर हार गए तो आपको तीनो लोक के चलकर सात चक्कर लगाने होगे! ”नारद जी ने अभिमानवास स्वीकार कर ली चुनौती। प्रभु से विदाई लेके सर्वप्रथम...