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विदेशी प्यार
मां,आप खाना क्यूं नहीं खा रहे हो? लतिका ने पूछा तो मां का ध्यान भंग हुआ।
क्या सोच रही हो मां,‌उसकी बिटिया लतिका ने पूछा।
कुछ नहीं,बेटा,मां ने कहा और वह पूर्ववत खाना खाने लगी।
कितनी जल्दी बीत गया था यह चार वर्ष का अंतराल।सब कुछ ठीक चल‌ रहा था कि अचानक से आये एक फोन ने जिंदगी की दिशा ही बदल दी।
आप रविन्द्र शर्मा जी के घर से बोल रहे हैं, उधर से आवाज आई।
हां जी कहिए,हम उनके घर से बोल रहे हैं,लतिका की मां ने कहा।
आप शीघ्र कपूर हौस्पिटल पहुंचे,हम हौस्पिटल से बोल रहे हैं।
किसी अनहोनी की आशंका से उनका दिल कांप उठा।फ़ौरन बेटे संजीव और बिटिया लतिका को फोन कर दिया।वह कंप्यूटर साइंस के स्नातक के अंतिम वर्ष में पढ़ रहा था। बिटिया लतिका बी.ए.प्रथम वर्ष की छात्रा थी।
वह स्वयं भी शोध‌ अधिकारी के पद पर कार्यरत थी।
वे अस्पताल पहुंचे,। रविन्द्र शर्मा जी अब नहीं रहे,सुनकर उनपर दुःख का पहाड़ टूट पड़ा। किसी प्रकार उन्होंने घर की हालत को संभाला। समय बीतता गया।
आज उनका पुत्र संजीव वाशिंगटन से एक वर्ष की ट्रेनिंग के बाद अवकाश में घर आ रहा था। रात्रि के आठ बजे फ्लाइट आनी थी। बेटे से मिलने की खुशी में खाना हलक से नीचे नहीं उतर रहा था।
क्या खोया और क्या पाया,वह इसी का आकलन कर रही थी।
मम्मी जी, आप खाना खाते खाते फिर रूक गये।। क्या बात है कि लतिका ने पूछा।
कुछ नहीं बेटा,मां ने कहा।
अच्छा,अब पांच बज गए हैं। बेटा, तुम अब तैयार हो जाओ।
वे लोग सही समय पर एयरपोर्ट पहुंच गए। संजीव को लेकर सब घर आ गये।
भोजन के बाद, मां ने कहा, बेटा,मैंने आपके विवाह के लिए लड़की देखी है । यदि तुम्हारी इच्छा हो तो आगे बात बढ़ाएं।
मम्मी जी,कहते हुए संजीव ने वैलेट से एक फोटो निकाल कर मां को दिखाई।
मम्मी जी, मैं इसको बहुत चाहता हूं। संजीव ने कहा।
क्या नाम है इसका? किस जाति बिरादरी की है यह,?कहां रहती है यह? मां ने एक साथ कई सवाल कर दिये।
मम्मी जी, इसका नाम क्रिस्टीना है और यह वाशिंगटन में ही रहती है।
वहां पर जाति बिरादरी नहीं हैे, और वे लोग एडवांस्ड हैं। संजीव ने कहा।
हां, हां,अब मुझे तुम बताओगे कि वो एडवांस्ड हैं और हम पिछड़े हुए हैं। भारतीय संस्कृति को मानना और संस्कारों का आदर करना, यदि पिछड़ापन कहलाता है तो हम पिछड़े ही ठीक हैं। क्या मालूम था कि तुझे पढ़ा लिखा कर आज मुझे तुम से ही पढ़ना पड़ेगा।
मां लगातार कहती ही जा रही थी कि अचानक....
अरे अरे, यह क्या,?? लतिका, इनको पकड़ो।
संजीव ने कहा।
मां जमीन पर गिर पड़ी थीं।
दोनों उनको हास्पिटल लाए जहां उनको आई,.सी , यू.में भर्ती कराया गया।
उनको दिल का दौरा पड़ा था। डाक्टर ने लंबे इलाज और हार्ट का आपरेशन बताया।
संजीव ने सारी बात क्रिस्टीना को बतायी।
उसने हौस्पिटल का पूरा पता व‌ मां का हाल चाल जाना।
पांच दिन हो चुके थे,कल डाक्टर ने आपरेशन के लिए दिन तय किया है।
अरे क्रिस्टीना तुम, संजीव उसे अचानक सामने देखकर हैरान रह गई था।
कब आईं तुम? उसने पूछा।
आज सुबह ही डैडी के साथ आई हूं ।
उन्हें दिल्ली में दूतावास में एक मीटिंग में आना था।वे वहां गए है और शाम को आयेंगे।
शाम को क्रिस्टीना के पापा भी आ गये।बहन लतिका भी हौस्पिटल पहुंची। संजीव ने उनका परिचय करवाया एवं अपनी मां से भी
मिलवाया। क्रिस्टीना के पिता ने कहा , मैं कल सुबह की फ्लाइट से वापस जा रहा हूं।
क्रिस्टीना अपने चाचा के घर दिल्ली में रुक जायेगी।
नियत समय पर आपरेशन हो गया।क्रिस्टीना मन से उनकी सेवा करने से लगी।हर रात को मां के पास क्रिस्टीना ही रुकती थी। उसकी अतुलनीय सेवा देखकर संजीव की मां का मन द्रवित हो उठा।
अठारह दिन बाद, संजीव की मां को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। वे सब घर पहुंच गए।
संजीव की मां अब पहले वाली संजीव की मां नहीं रह गयी थी।
उसने मन में एक निर्णय कर लिया था।
संजीव और लतिका को बुलाया और क्रिस्टीना के साथ संजीव के विवाह के लिए अपनी सहमति दे दी।
...... समाप्त......

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