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शिवत्व
साधना ही एकमात्र ऐसा मार्ग है जिसका कोई अंत या अंतिम बिंदु व गंतव्य नहीं होता , इसमें बस एक पायदान आता है जहा आप समाधी में लीन हो जाते है। आपका अस्तित्व शैव से शिव में परिवर्तित हो जाता है। आप ही शिव का अंश व स्वयं साक्षात शिव बन जाते है। इसे ही आदिशंकराचार्य जी ने निर्वाण षटकम स्रोत में कुछ इसी प्रकार वर्णित किया है " चिदानंद रूपा शिवोहम शिवोहम " अर्थात " में ही शैव हूं , में ही शिव हूं ,में ही शिव हूं "। आप ही स्वयं में पूरा भ्रह्मंड है। आप ही निराकार, नीरूप व निर्गुर्ण शिव है । आपके जीवन का अन्य कोई भी मार्ग आपको मृत्यु की और अग्रसर करता है ,यानी कि अंत की और । अंत से तात्पर्य आपकी समय अवधी का समाप्त होना ,इसे ही काल कहा जाता है। और इसी समय यानी काल के अधिपति को हम महाकालेश्वर के नाम से संबोधित करते है। तो जहा मृत्यु है , वहा जन्म की उत्पत्ति की संभावना है , जहा जन्म है...