नन्हीं-नन्हीं बेलें
ये नन्हीं-नन्हीं बेलें, जब हो जाएगी कुछ समय में बड़ी, तो इन पर लगने लगेगें, छोटे-छोटे सफेद-गुलाबी फूल ! हालांकि सुगंधरहित पर रंगयुक्त, इससे भी महत्वपूर्ण है इनके पनपने का उत्साह और उगाने का प्रयास !!
यूं तो मुझे बागवानी का ज़रा भी अनुभव नहीं है पर हां मन ही मन शौक बहुत है । संभवतः यह बचपन में दादोसा को अपने उगाए नींबू-गूंदे आदि पौधों में पानी डालते देखने से ही पनपा है। उस समय आज की तरह गांव के घरों में नल नहीं हुआ करते थे, तब भी वे बाहर से पानी ला-लाकर उन नन्हें पौधों को पिलाया करते थे और साथ में मैं अपने छोटे पानी के बर्तनों को लिए उनके साथ-साथ चला करती थी और मेरी दादीसा हम दोनों को ही बस करने का कहते नहीं थकते थें। मुझे संतोष उनकी खुशी देखकर था और उन्हें पौधों को देख कर !
उस समय मैं उनके मन के आनंद से अनभिज्ञ थी, पर आज मैं वह महसूस कर सकती हूँ। नवसृजन का उत्साह हर परिश्रम की थकावट से परे होता है। आज उनके लगाएं न जाने कितने ही पौधे जो पेड़ बन चुके हैं उनकी छांव में बैठना मानो दादा के आशीर्वाद की छांव में बैठने समान है। खेजड़ी के खोखो की मिठास में भी वो पुरानी यादों का अहसास भरा है।
मैं यह तो बिल्कुल नहीं कहूंगी कि मैंने अपने जीवन में कोई बहुत से पेड़-पौधे लगाए हैं, पर हां एक बार कक्षा-12 के अपने विद्यार्थियों को मेरे द्वारा प्रेरित किए जाने पर उनके द्वारा निजी तौर पर लगाए गए पौधे, तस्वीरें जब मैंने सोशल मीडिया पर देखें तो बड़ा सुकून महसूस हुआ।
हां, तो मैं बता रही थी, ये नन्हीं बिच्छू-बेल, मेरे पास आखिरकार पंहुची कैसे?
अब स्थानीय भाषा में हम तो इसे बिच्छू-बेल ही कहते हैं, हिंदी नाम मुझे भी ज्ञात नहीं । न जाने कितने ही महीनों से मैं इसे उगाना चाह रही थी । इसी को उगाने का कारण सिर्फ ये था कि यह बिना बीज आसानी से उग जाती है और फैलाव भी अच्छा लेती हैं । इसके रंगीन फूल इसकी हरियाली पर चार चांद लगा देते हैं और रहे-सहे इसके कुछ क्रियेटिव विडीयों मैंने यू-ट्युब पर देख लिए, तबसे तो इसे लगाने का बहुत ही मन था। पास के दोनों गॉर्डनों में पता किया, नहीं मिली। कॉलोनी के दो-चार घरों में जहां मिलने की संभावना थी, पता किया पर नहीं मिल पायी ।
पिछले साल की बात है, एक दिन एक महिला स्टॉफ के व्हाट्सएप स्टेट्स में मुझे वो सफेद-गुलाबी फूल दिखें, पर दूरी के कारण उनके घर से लाना भी संभव नही हो पा रहा था । कल किसी अन्य मैडम से फोन पर वार्ता में मैंने उस बेल का जिक्र किया, यकायक संयोग ऐसा बना कि इन दोनों मैडमों के सहयोग से आज सुबह ही स्कूल के चपरासी भैया द्वारा वो बेल मेरे घर ही पंहुचा दी गई और साथ में ये एक बैंगनी सा पौधा भी जो न जाने किसका है, पर है खुबसुरत। बहुत-बहुत साधुवाद इन सभी को !
तो अंततः इसतरह ये बेलें मेरे पास आ ही गई, और मैंने बड़े मनोयोग से इन्हें लगा भी दिया। अब कितनी पनपेगीं ये तो भगवान ही जानें, पर आशा है कुछ समय बाद इसी बिच्छू-बेल के उन रंगीन फूलों के साथ मैं साझा करूंगी, अपने कुछ और नये अनुभव !!
©Mridula Rajpurohit ✍️
🗓️29 October, 2021
#grandparents _ #love #memories #childhood
© All Rights Reserved
यूं तो मुझे बागवानी का ज़रा भी अनुभव नहीं है पर हां मन ही मन शौक बहुत है । संभवतः यह बचपन में दादोसा को अपने उगाए नींबू-गूंदे आदि पौधों में पानी डालते देखने से ही पनपा है। उस समय आज की तरह गांव के घरों में नल नहीं हुआ करते थे, तब भी वे बाहर से पानी ला-लाकर उन नन्हें पौधों को पिलाया करते थे और साथ में मैं अपने छोटे पानी के बर्तनों को लिए उनके साथ-साथ चला करती थी और मेरी दादीसा हम दोनों को ही बस करने का कहते नहीं थकते थें। मुझे संतोष उनकी खुशी देखकर था और उन्हें पौधों को देख कर !
उस समय मैं उनके मन के आनंद से अनभिज्ञ थी, पर आज मैं वह महसूस कर सकती हूँ। नवसृजन का उत्साह हर परिश्रम की थकावट से परे होता है। आज उनके लगाएं न जाने कितने ही पौधे जो पेड़ बन चुके हैं उनकी छांव में बैठना मानो दादा के आशीर्वाद की छांव में बैठने समान है। खेजड़ी के खोखो की मिठास में भी वो पुरानी यादों का अहसास भरा है।
मैं यह तो बिल्कुल नहीं कहूंगी कि मैंने अपने जीवन में कोई बहुत से पेड़-पौधे लगाए हैं, पर हां एक बार कक्षा-12 के अपने विद्यार्थियों को मेरे द्वारा प्रेरित किए जाने पर उनके द्वारा निजी तौर पर लगाए गए पौधे, तस्वीरें जब मैंने सोशल मीडिया पर देखें तो बड़ा सुकून महसूस हुआ।
हां, तो मैं बता रही थी, ये नन्हीं बिच्छू-बेल, मेरे पास आखिरकार पंहुची कैसे?
अब स्थानीय भाषा में हम तो इसे बिच्छू-बेल ही कहते हैं, हिंदी नाम मुझे भी ज्ञात नहीं । न जाने कितने ही महीनों से मैं इसे उगाना चाह रही थी । इसी को उगाने का कारण सिर्फ ये था कि यह बिना बीज आसानी से उग जाती है और फैलाव भी अच्छा लेती हैं । इसके रंगीन फूल इसकी हरियाली पर चार चांद लगा देते हैं और रहे-सहे इसके कुछ क्रियेटिव विडीयों मैंने यू-ट्युब पर देख लिए, तबसे तो इसे लगाने का बहुत ही मन था। पास के दोनों गॉर्डनों में पता किया, नहीं मिली। कॉलोनी के दो-चार घरों में जहां मिलने की संभावना थी, पता किया पर नहीं मिल पायी ।
पिछले साल की बात है, एक दिन एक महिला स्टॉफ के व्हाट्सएप स्टेट्स में मुझे वो सफेद-गुलाबी फूल दिखें, पर दूरी के कारण उनके घर से लाना भी संभव नही हो पा रहा था । कल किसी अन्य मैडम से फोन पर वार्ता में मैंने उस बेल का जिक्र किया, यकायक संयोग ऐसा बना कि इन दोनों मैडमों के सहयोग से आज सुबह ही स्कूल के चपरासी भैया द्वारा वो बेल मेरे घर ही पंहुचा दी गई और साथ में ये एक बैंगनी सा पौधा भी जो न जाने किसका है, पर है खुबसुरत। बहुत-बहुत साधुवाद इन सभी को !
तो अंततः इसतरह ये बेलें मेरे पास आ ही गई, और मैंने बड़े मनोयोग से इन्हें लगा भी दिया। अब कितनी पनपेगीं ये तो भगवान ही जानें, पर आशा है कुछ समय बाद इसी बिच्छू-बेल के उन रंगीन फूलों के साथ मैं साझा करूंगी, अपने कुछ और नये अनुभव !!
©Mridula Rajpurohit ✍️
🗓️29 October, 2021
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