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जीवन घर नहीं है
कमरे में सिर्फ घना अँधेरा था। मैं पलंग पर सोया हुआ था। नींद ज्यादा गहरी नहीं थी, क्यूँकि सोते हुए मेरे कानों के अंदर झींगुर की आवाज अपना घर बना रही थी। कुछ देर बाद सोते हुए मुझे किसी बच्चे के रोने की आवाज आई । आवाज सुनते ही मेरी आँखें खुल गईं। आँखें खुलते ही रोने की आवाज आनी बंद हो गई। मैने पलंग से उतरकर तुरंत ट्यूबलाइट चालू करी और कमरे में इधर उधर देखा, लेकिन कमरे में मेरे सिवाय कोई और नहीं था। फिर मुझे लगा कि वह रोने की आवाज शायद बाहर से आई होगी और मैं ट्यूबलाइट बंद करके दोबारा बिस्तर पर आकर सो गया। सोते हुए कुछ ही देर हुई होगी कि वह रोने की आवाज मुझे फिर से आने लगी। मैने आँखें खोली और ध्यान से उस आती आवाज को सुना। वह आवाज कहीं बाहर से नहीं बल्कि मेरे पलंग के नीचे से आ रही थी। मेरे दिल की धड़कनें तेज होने लगीं, मैं समझ नहीं पा रहा था कि क्या करूँ। मैने खुद को पूरी तरह चादर में ढ़क लिया। मेरी बिल्कुल भी हिम्मत नहीं हो रही थी कि पलंग से उतर कर दोबारा ट्यूबलाइट चालू कर दूँ। कुछ देर तक वह रोने की आवाज आती रही और मैं खुद को चादर में कैद करके चुपचाप बहते पसीने के साथ उस आवाज को सुनता रहा। फिर अचानक से वह रोने की आवाज शांत हो गई। मैंने चादर को अपने शरीर से अलग किया और बिस्तर पर पड़ी अपनी टी-शर्ट से सिर से बहते हुए पसीने को पौंछा। मैने तुरंत फोन उठाया और फोन की टाॅर्च चालू करी। टाॅर्च लाईट चालू करके मैने पलंग के नीचे देखने के लिए अपने अंदर हिम्मत इकठ्ठी करी। पलंग से बिना उतरे ही मैंने नीचे झांकने के लिए अपने सिर को आगे किया। जैसे ही मैंने पलंग के नीचे देखने के लिए गर्दन को आगे किया उतने में ही मेरे हाथ से फोन गिर गया जिससे फोन का टाॅर्च वाला हिस्सा जमीन की तरफ हो गया और कमरे में अँधेरा छा गया। कमरे में अँधेरा होते ही पलंग के नीचे से तेज तेज किसी बच्चे के हँसने की आवाज आने लगी। आवाज सुनकर मेरी हालत पतली हो गई और मैंने फोन को जमीं पर ही पड़े रहने दिया। कुछ देर बाद हँसने की आवाज बंद हो गई। लेकिन हँसने की आवाज के बंद होने के बाद मेरा पलंग हिलने लगा। ये देखकर मुझसे पलंग पर रहा नहीं गया, मैं तुरंत छलाँग लगाकर बिस्तर से कूद पड़ा। मैने बिस्तर से उतरते ही सबसे पहले ट्यूबलाइट चालू करने के लिए बटन दबाया लेकिन ट्यूबलाइट चालू नहीं हुई। मुझे लगा शायद बिजली चली गई होगी, लेकिन जब पंखे पर मेरी नजर पड़ी तो देखा पंखा बराबर घूम रहा था। यह देखकर मैं सन्न रह गया। जल्दी से मैने अपने कदमों को दरवाजे की तरफ जाने के लिए उठाया। लेकिन पूरी कोशिश करने के बाद भी मेरे कदम वहीं चिपके रह गए। मैं अपनी जगह से हिल नहीं पा रहा था। उसी समय पलंग के नीचे से मेरा नाम लेकर मुझे बुलाने की आवाज आई। मैने हिम्मत करके पलंग के नीचे झांकने के लिए खुद को आगे किया। जैसे ही मैने पलंग के नीचे देखा, मुझे अँधेरा होने की वजह से कुछ भी साफ दिखाई नहीं दिया। लेकिन इतना जरूर दिखाई दिया कि वह कोई बच्चा नहीं बल्कि एक बड़ा आदमी था जो वहाँ सिकुड़ कर लेटा हुआ था। अब मुझे ये समझ नहीं आ रहा था कि वह पहले किसी बच्चे के हँसने और रोने की आवाज कहाँ से आ रही थी। यह सोचकर मेरा गला सूखा जा रहा था। तभी उस आदमी ने मेरी तरफ देखा। जैसे ही उसने अपना सिर मुझे देखने के लिए ऊपर उठाया पलंग के नीचे लाल रंग की रोशनी चमकने लगी मानो किसी ने लाल बत्ती जला दी हो। उस समय मैं इतना डरा गया कि मेरी आँखों से आँसू टपकने लगे। मैं वहाँ से हिल भी नहीं पा रहा था। मैने चिल्लाने की कोशिश की लेकिन मेरी आवाज गले में ही अटक गई। मैं खूब कोशिश करता रहा लेकिन आवाज गले में ही अटकी रही और आँखों से आँसू टपकते रहे। तभी उस आदमी ने भी रोना शुरू कर दिया, फिर से वह बच्चे की आवाज में ही रो रहा था। फिर अचानक वह चुप हो गया और मुझे घूरकर देखने लगा। मैने भी हिम्मत करके उसकी तरफ देखा। उसका पूरा चेहरा खून से सना हुआ था। यह देखकर मेरा डर कम होने की जगह और ज्यादा बढ़ गया। मेरे हाथ पैर काँप रहे थे मुझे यही लग रहा था कि यह रात मेरी आखिरी रात होगी।
फिर वह आदमी मुझसे प्यार से बोला "डरो मत, मैं तुम्हें नुकसान नहीं पहुंचाऊँगा।"
अब उसकी आवाज बड़े व्यक्ति जैसी ही थी जबकि रोने और हँसने की आवाज किसी छोटे बच्चे जैसी थी। अब मेरे मन में कई सवाल घुमने शुरू कर दिए लेकिन उनके उत्तर पूछने की बात तो दूर, डर से मेरी आवाज भी नहीं निकल रही थी। वह आदमी पलंग के नीचे से सरक सरककर बाहर आने लगा। फिर वह अचानक रूका और मुझसे आँसु पोंछने के लिए कहा। मैंने अपने आँसू पोंछे और हिम्मत करके उस बूढ़े आदमी से बात करने की हिम्मत करी। मैने उससे सबसे पहले यही पूछा कि वह कमरे के भीतर कैसै आया और पलंग के नीचे क्या कर रहा है।
वह थोड़ी देर के लिए चुप हो गया फिर मुझे अपने नजदीक बुलाया और बोला " सुन तुम मर चुके हो हाँ तुम मर चुके हो, यहाँ सबके सब मरे हुए हैं कोई जिंदा नहीं, मैं तुम सब मुर्दों का बोझ ढो रहा हूँ, तुम सबको अब यहाँ से ले जाने आया हूँ।" यह सुनकर मुझे उससे यह पूछने की इच्छा हुई कि सब कौन हैं यहाँ जो वह बोल रहा है सब मर चुके हैं, लेकिन डर इतना था कि मेरी उससे यह पूछने की हिम्मत नहीं हुई और मैं चुपचाप बैठा रहा। फिर उसने मुझसे मेरा एक हाथ आगे करने को कहा। पहले तो मैं थोड़ा हिचकिचाया फिर उसके दोबारा कहने पर मैंने अपना दाहिना हाथ आगे कर दिया। उसने भी अपना दाहिना हाथ आगे किया और मेरे हाथ के ऊपर रख दिया। उसके हाथ रखते ही मेरी आँखें बंद हो गईं और मेरे भीतर प्रकाश छा गया जैसे मानो मैं सूर्य के नजदीक पहुँच गया हूँ। फिर धीरे धीरे वह प्रकाश कम होने लगा और मुझे हर तरफ चिता की राख के ऊपर पड़े कंकाल दिखाई देने लगे। फिर जोर से एक आवाज आई "रोशनी सत्य नहीं है और ना ही तेरी चलती साँसें सत्य हैं, सत्य तो हमेशा चमकता रहता है, सत्य हमेशा विद्यमान रहता है मौत से पहले भी और मौत के बाद भी।"
फिर वह आवाज शांत हो गई और मैने आँखें खोली। आँखें खोलते ही मैने देखा मेरे पास से वह बूढ़ा आदमी गायब हो चुका था। अब उस स्थान पर एक पुस्तक रखी हुई थी। मैने पुस्तक को उठाया और वहाँ से उठकर अपने बिस्तर पर जाकर बैठ गया। उस पुस्तक के बाहर कुछ लिखा हुआ था। मैने सबसे पहले वह लिखी हुई लाईन(पंक्ति) पढ़ी। उस लाईन को पढ़ते ही मेरी मानो साँस ही अटक गई।
उसमें लिखा हुआ था "इस पुस्तक को केवल मरा हुआ व्यक्ति ही देख और पढ़ सकता है।" मैं पहले से ही बहुत घबराया हुआ था अब यह पढ़कर मैं और डर गया। अब मेरी पुस्तक खोलने की हिम्मत नहीं हो रही थी। फिर मैने वह पुस्तक उठाकर अलमारी में रख दी और बिस्तर पर आकर लेट गया। लेटे हुए वही लाईन बार बार मेरे दिमाग में आने लगी। लेकिन दिमाग में यह विचार भी आया कि मरा हुआ व्यक्ति कैसे कुछ पढ़ और देख सकता है। फिर मुझे थोड़ी हिम्मत आई और मैं उठकर उस किताब को अलमारी के अंदर से निकाल कर ले आया। मैंने सबसे पहले पुस्तक पर उस लाईन को फिर से पढ़ने के नजरें डालीं। मैने पुस्तक पर लिखी लाईन पढते ही उस पुस्तक को हाथ से दूर कर दिया। इस बार पुस्तक पर वह लाईन नहीं लिखी हुई थी बल्कि कुछ और लिखा हुआ था। उस पुस्तक पर लिखा हुआ था " जिंदा रहकर हमैशा मौत से डरते रहे, मरने के बाद तो मौत से प्यार कर लो।"
मेरा सिर चकराने लगा और मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि ये सब कैसे हुआ। मैने समय देखने के लिए घड़ी की तरफ देखा तो घड़ी रूकी हुई थी। मुझे लगा शायद घड़ी की बैटरी खत्म हो गई होगी इसलिए चलते चलते घड़ी रूक गई है। फिर मैने फोन उठाया और समय देखने लगा। लेकिन फोन भी बंद पड़ा था। मुझे अब कुछ समझ नहीं आ रहा था। मैं फिर से उठकर दरवाजे की तरफ गया और दरवाजे को खोलने लगा। लेकिन खुब मशक्कत करने के बाद भी मुझसे दरवाजा नहीं खुला। मैंने जोर से चिल्लाने की कोशिश की लेकिन फिर से आवाज गले से बाहर नहीं निकली।
मुझे पीछे से एक आवाज आई "मौत पास आई है गले लगा लो, बेटा मौत ही सत्य है और सत्य से ज्यादा देर तक तुम दूर नहीं रह सकते।"
मैने पिछे मुड़कर देखा तो बिस्तर पर वही बूढ़ा आदमी बैठा हुआ था। अब वहाँ से वह पुस्तक भी गायब हो गई थी।
मैं रोते हुए बोला "मुझे क्यूँ परेशान कर रहे हो, मैने क्या किया है।"
फिर वह बूढ़ा आदमी बोला "कोई किसी को परेशान नहीं कर सकते, सब खुद ही अपने कारण परेशान हैं।"
मैने पूछा " आप तो गायब हो गए थे फिर दोबारा कैसे आ गए"। उस बूढ़े आदमी ने उत्तर दिया "बेटा मैं ही तेरा सत्य हूँ और सत्य थोड़ी देर के लिए गायब तो हो सकता है लेकिन मिट नहीं सकता, तुझे मेरे साथ चलना है इसलिए ही मैं यहाँ आया हूँ"। मैने हड़बड़ाहट में तुरंत पूछा "मुझे कहाँ ले जाने के लिए आए हो, मुझे कहीं नहीं जाना"। वह बूढ़ा आदमी बोला "बेटा जिसे कहीं नहीं भी जाना हो वो भी एक ना एक दिन कहीं जरूर जाता है, जिंदगी ठहराव नहीं है ना ही मौत ठहराव है, जिंदगी से मौत तक की यात्रा हर किसी को करनी होती है और मौत के बाद भी सफर जारी रहता है, तुम्हारी यह यात्रा कुछ देर पहले ही खत्म हो चुकी है, तुम्हारे साथ साथ बहुत सारे और भी यात्री अपने जीवन की यात्रा समाप्त करके मेरे साथ आए हैं बस उन्हीं को बिच मैं छोड़ने चला गया था, और जो तुम्हें पहले बच्चों के रोने और हँसने की आवाज आ रही थी वो भी अपनी जीवन की यात्रा समाप्त कर चुके थे"। मैने तुरंत पूछा "तुमने तो कहा था कि यहाँ सब मरे हुए हैं तो क्या तुम भी मर चुके हो और अगर तुम मर चुके हो तो फिर तुम बार बार कैसे आ जा सकते हो।"
बूढ़े आदमी ने उत्तर दिया "बेटा मृत्यु सत्य जरूर है लेकिन अंत नहीं है, मृत्यु शरीर से साँसें तो छिन सकती है लेकिन आत्मा नहीं, कोई बात नहीं तुम धीरे धीरे सब समझ जाओगे, अब आओ मेरा हाथ पकड़ा और आगे की यात्रा के लिए तैयार हो जाओ।" मैं उस बूढ़े आदमी की बात सुनकर भीतर से शांत हो गया और फिर मैने चुपचाप अपना हाथ उस बूढ़े आदमी के हाथ में दे दिया और हम दोनों वहाँ से गायब हो गए।
© hriday_vishal