...

4 views

जीवन घर नहीं है
कमरे में सिर्फ घना अँधेरा था। मैं पलंग पर सोया हुआ था। नींद ज्यादा गहरी नहीं थी, क्यूँकि सोते हुए मेरे कानों के अंदर झींगुर की आवाज अपना घर बना रही थी। कुछ देर बाद सोते हुए मुझे किसी बच्चे के रोने की आवाज आई । आवाज सुनते ही मेरी आँखें खुल गईं। आँखें खुलते ही रोने की आवाज आनी बंद हो गई। मैने पलंग से उतरकर तुरंत ट्यूबलाइट चालू करी और कमरे में इधर उधर देखा, लेकिन कमरे में मेरे सिवाय कोई और नहीं था। फिर मुझे लगा कि वह रोने की आवाज शायद बाहर से आई होगी और मैं ट्यूबलाइट बंद करके दोबारा बिस्तर पर आकर सो गया। सोते हुए कुछ ही देर हुई होगी कि वह रोने की आवाज मुझे फिर से आने लगी। मैने आँखें खोली और ध्यान से उस आती आवाज को सुना। वह आवाज कहीं बाहर से नहीं बल्कि मेरे पलंग के नीचे से आ रही थी। मेरे दिल की धड़कनें तेज होने लगीं, मैं समझ नहीं पा रहा था कि क्या करूँ। मैने खुद को पूरी तरह चादर में ढ़क लिया। मेरी बिल्कुल भी हिम्मत नहीं हो रही थी कि पलंग से उतर कर दोबारा ट्यूबलाइट चालू कर दूँ। कुछ देर तक वह रोने की आवाज आती रही और मैं खुद को चादर में कैद करके चुपचाप बहते पसीने के साथ उस आवाज को सुनता रहा। फिर अचानक से वह रोने की आवाज शांत हो गई। मैंने चादर को अपने शरीर से अलग किया और बिस्तर पर पड़ी अपनी टी-शर्ट से सिर से बहते हुए पसीने को पौंछा। मैने तुरंत फोन उठाया और फोन की टाॅर्च चालू करी। टाॅर्च लाईट चालू करके मैने पलंग के नीचे देखने के लिए अपने अंदर हिम्मत इकठ्ठी करी। पलंग से बिना उतरे ही मैंने नीचे झांकने के लिए अपने सिर को आगे किया। जैसे ही मैंने पलंग के नीचे देखने के लिए गर्दन को आगे किया उतने में ही मेरे हाथ से फोन गिर गया जिससे फोन का टाॅर्च वाला हिस्सा जमीन की तरफ हो गया और कमरे में अँधेरा छा गया। कमरे में अँधेरा होते ही पलंग के नीचे से तेज तेज किसी बच्चे के हँसने की आवाज आने लगी। आवाज सुनकर मेरी हालत पतली हो गई और मैंने फोन को जमीं पर ही पड़े रहने दिया। कुछ देर बाद हँसने की आवाज बंद हो गई। लेकिन हँसने की आवाज के बंद होने के बाद मेरा पलंग हिलने लगा। ये देखकर मुझसे पलंग पर रहा नहीं गया, मैं तुरंत छलाँग लगाकर बिस्तर से कूद पड़ा। मैने बिस्तर से उतरते ही सबसे पहले ट्यूबलाइट चालू करने के लिए बटन दबाया लेकिन ट्यूबलाइट चालू नहीं हुई। मुझे लगा शायद बिजली चली गई होगी, लेकिन जब पंखे पर मेरी नजर पड़ी तो देखा पंखा बराबर...