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Kingdoms and Emperors
*"सृष्टि चक्र में राजाओं और महाराजाओं की दो प्रकार की राज्य प्रणालियों की दो प्रकार की स्थितियां"*

*वैसे तो सतयुग से लेकर कलयुग (संगमयुग) तक राजाएं और महाराजाएं अनेक होते हैं और अनेक प्रकार के होते हैं। जितने भी राजायें और महाराजायें अतीत में रहे हुए हैं उन सबकी अपनी अपनी स्थितियां रही थीं। फिर भी उन सभी राजाओं और महाराजाओं के बारे में उनके अध्यात्मिक और भौतिक खजानों की स्थिति (उपलब्धता) और प्रजा की संख्या की स्थितियों के अनुसार विशेष दो प्रकार के राजाओं महाराजाओं का ईश्वरीय महावाक्यों में वर्णन है।*

1. *👉ऐसे राजा और महाराजा जिनके राज्य में उनकी प्रजा की संख्या तो कम या बहुत कम होती है। लेकिन उनके राज्य में अध्यात्मिक और भौतिक खजाने अधिक या बहुत अधिक होते हैं। यह सतयुग और त्रेतायुग के राज्यों की स्थिति होती है। जीवन विज्ञान और मनोविज्ञान कहता है कि यह स्थिति राज्य की और राजा महाराजा की सकारात्मक स्थिति होती है। ऐसे राज्यों में समय के अन्तराल में विकृतियां (विकार) आती तो हैं। लेकिन वे बहुत धीरे धीरे लम्बे समय के बाद आती हैं। अधिकांश समय सुखद और शान्त अवस्था में गुजरता है।*

2. *👉ऐसे राजा और महाराजा जिनके राज्य में उनकी प्रजा की संख्या तो अधिक या बहुत अधिक होती है। लेकिन उनके राज्य में अध्यात्मिक और भौतिक खजाने कम या बहुत कम होते हैं। यह द्वापरयुग और कलयुग के राज्यों की स्थिति होती है। जीवन विज्ञान और मनोविज्ञान कहता है कि यह स्थिति राज्य और राजा महाराजा की नकारात्मक स्थिति होती है। ऐसे राज्यों में विकृतियां शीघ्र और तीव्र गति से आती हैं। अधिकांश समय दुखद और अशांत अवस्था में गुजरता है।*

*इन्हीं दोनों स्थितियों को जीवन विज्ञान और मनोविज्ञान के अनुसार दूसरे ढंग से भी समझें।*

*1. 👉यदि राजाओं महाराजाओं के राज्य में आध्यात्मिक खजाने ज्यादा या बहुत ज्यादा होते है और भौतिक खजाने कम या बहुत कम होते हैं तो यह स्थिति सकारात्मक स्थिति कम होती है और नकारात्मक स्थिति ज्यादा होती है।*

*2. 👉 यदि राजाओं महाराजाओं के राज्य में आध्यात्मिक खजाने कम या बहुत कम होते हैं और भौतिक खजाने ज्यादा या बहुत ज्यादा होते हैं तो यह स्थिति सकारात्मक स्थिति अधिक होती है और नकारात्मक स्थिति कम होती है।*

*👉ईश्वरीय ज्ञान विज्ञान राज्यों और राजाओं महाराजाओं की स्थिति के बारे में एक तीसरी प्रकार की स्थिति की बात भी समझाता है। वह ईश्वरीय विज्ञान है:-*

*ऐसे राज्य जिनमें अध्यात्मिक और भौतिक दोनों प्रकार के खजानों की विपुलता होती है। राज्यों की प्रजा की जितनी ज्यादा संख्या उतनी ही उनके अध्यात्मिक और भौतिक दोनों प्रकार के खजानों की विपुलता होती है। परमात्मा पुरुषोत्तम संगमयुग में अध्यात्मिक ज्ञान और राजयोग द्वारा ऐसे ही राज्यों और तदनुरूप राजाओं महाराजाओं की स्थिति की स्थापना कराते हैं।

लेकिन कलयुग के अन्त समय (संगमयुग) में सभी प्रकार के राज्यों और सभी प्रकार के राजाओं और महाराजाओं की सभी प्रकार की स्थितियां इकट्ठी देखी जा सकती हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि किन्हीं राज्यों की या राजाओं महाराजाओं की स्थितियां नकारात्मक और किन्हीं राज्यों की या राजाओं महाराजाओं की स्थितियां सकारात्मक होती है। किन्हीं राज्यों की या राजाओं महाराजाओं की स्थितियां सकारात्मक ज्यादा और नकारात्मक कम होती हैं। किन्हीं राज्यों की या राजाओं महाराजाओं की स्थितियां सकारात्मक कम और नकारात्मक ज्यादा होती हैं। यह वर्तमान समय संगमयुग की प्रैक्टिकल धरातलीय स्थिति है।

इस स्थिति को ही "दैहिक, दैविक भौतिक तापा, राम (परमात्म) राज्य नहीं काहू व्यापा" वाली स्थिति के रूप में वर्णन किया गया हुआ है। इस तथ्य और सत्य की नासमझी से भी जीवन में अनेक प्रकार की कठिनाइयां और जटिलताएं आती हैं। इसे विस्तारपूर्वक समझें और समझाएं।*

*केयर, शेयर और इंस्पायर करें।*

*हमेशा शान्त रहें। शान्ति से समझें और समझाएं। शान्ति से काम करें। शान्ति से काम लें। शान्ति सभी मूल्यों में शीर्ष पर और आधारभूत तथा सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। 🙏*
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