“कुनबा" - प्रथम प्रकरण - #गैर कहीं का!
अब तक आपने जाना कि कैसे एक तरफ तो संतबली के अंधे नशेपन से उसकी पत्नी समेत पूरा परिवार दुखी था, तो उसी मोहल्ले में एक ऐसा भी व्यक्ति था जो जीवन में सब कुछ पाकर भी अधूरा था। जो घर परिवार बसा के भी नहीं बस पाया। ये कहानी असल में संतबली की नहीं बल्कि संतब्ली को जीवन की सही राह दिखाने और उसे प्रभावित करने वाले हमारे एक लौते शर्माजी की है।
खैर ये तो बाद की बात है क्योंकि आजकल तो शर्माजी खुद अपने अस्तित्व की बुनियाद तलाशने में फंसे हुए हैं। हालात अगर बयान करने का प्रयास करें भी तो वो कुछ इस प्रकार होंगे-
"घर धुआं धुआं हो रखा है और आँगन पानी पानी, आँखे खोलो तो आँसू , और कदम बढ़ाओ तो कुल्लेह टूटने की नोबत खड़ी हो जानी है...अरे शर्माजी, कुछ तो शर्म करो, घर की खरियत पे ज़रा तो ध्यान दो, धीरज से काम लो भई,...
खैर ये तो बाद की बात है क्योंकि आजकल तो शर्माजी खुद अपने अस्तित्व की बुनियाद तलाशने में फंसे हुए हैं। हालात अगर बयान करने का प्रयास करें भी तो वो कुछ इस प्रकार होंगे-
"घर धुआं धुआं हो रखा है और आँगन पानी पानी, आँखे खोलो तो आँसू , और कदम बढ़ाओ तो कुल्लेह टूटने की नोबत खड़ी हो जानी है...अरे शर्माजी, कुछ तो शर्म करो, घर की खरियत पे ज़रा तो ध्यान दो, धीरज से काम लो भई,...