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सॉरी बेटा...!
जब पैसे नहीं थे तब

सॉरी बेटा

आज उसे पुरे 10 दिन हो गए थे अस्पताल में अपने बाबूजी की सेवा करते करते...! किसी का इस तरह से वे-दौलत मंद होना कितना खलता हैं ना वो समाज़ में रहने लायक होता हैं और नाही खून के रिश्तों का चहेता होता हैं... हर और हीनता, तिरस्कार की बातों से गुज़ारना पड़ता हैं...कुछ ऐसा ही दीप की ज़िन्दगी का था..

आज उसके बेटे का जन्म दिन था.. जिसके चलते उसकी व्याकुलता काफी बढ़ती जा रही थी.. वो बार बार खड़की की सटी गैलरी में देखता और फिर बाबू जी के पैर दवाने में लग जाता.. जबकि उसने छोटे भाई से कहा था के आज भर उसे घर जाना बहुत ज़रूरी हैं इसलिए तुम शाम को 5 बजे तक ज़रूर आ जाना या किसी को भेज देना... छोटू ने भी इस बात पर हामी भर दी थी... और वो भी उसे आसवसन दें कर गया था... लेकिन ये क्या शाम के 7 बज चुके थे... लेकिन अभी तक किसी के भी ना आने से दीप मन ही मन चिढ़ भी रहा था... और बुद बूदाए जा रहा था..

8 किलोमीटर पैदल जाना हैं... कैसे होगा... एक़ घंटा तो लग ही जाएगा... पैसे भी सिर्फ सत्तर ही रुपए हैं कम से कम पेस्ट्री ही लें जाऊंगा गोलू खुश हो जाएगा...60 रूपये की तो तीन पेस्ट्री ही आएँगी दस रूपये में तो बस से भी नहीं घर पहुंच पाऊंगा.. लेकिन कुछ भी हो आज मैं घर जाऊंगा जरूर.... लेकिन अभी...