...

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मेरा हर सफ़र
अब मेरी मंज़िल तक नहीं पहुंचता..
जिस दिन से तुम हमें बीच सफ़र पर छोड़ कर अपनी जन्नत की ओर चल दिए थे..उस दिन के बाद से,
जबसे तुम गए हो न तब से बहुत बार सफ़र करना पड़ा है वो भी बिल्कुल अकेले ख़ुद के साथ क्योंकि मेरी अब हिम्मत नहीं होती किसी दोस्त या सहेली के साथ भी सफ़र पर निकलने की... कुछ महीनों तक हमें ट्रेन, गाड़ी, रिक्शा, ई रिक्शा, आटो,बाइक, और ख़ासकर की बस जहां हम ऐसे बिछड़े की दोबारा न मिले, इन सभी को देखकर नफरतों की ज्वाला मेरे भीतर जल जाती थी और हम इस क़दर सुलगते थे कि मेरे आंसूओं कै सैलाब मेरे चेहरे को भिगोता हुआ मेरे दिल के भीतर जल रही आग को भी बुझा पाने में समर्थ न हो पाता था,
लेकिन अब, जब मजबूरियों में सफ़र पर जाना पड़ता है तो हम ख़ुद को साथ लेकर मन की उधेड़बुन में चले जाते हैं, अपने आंसूओं को हम अब गिरने से नहीं रोकते ,अब फ़र्क नहीं पड़ता कि सामने बैठी औरत या पड़ोस में बैठे अंकल या अगल बगल के कपल हमें घूर घूर कर रोते हुए देखते हैं.. और मन में ही मनगढ़ंत कहानी मेरे बारे में बना लेंगे..
गाड़ी में अब हम कभी किसी के साथ आगे वाली सीट पर नहीं बैठते,, क्योंकि बगल में बैठा ड्राइव करने वाला शख्स हमें तुम्हारे साथ बिताए हुए पलों को याद दिलाता है, बैठने की हिम्मत तो पीछे की सीट पर भी नहीं होती वहां हमें तुम्हारी गोद बहुत याद आती है,,
अब ट्रेन में बैठकर भी खिड़की से बाहर झांकते हुए लगता है, तुम अभी सामने वाले स्टाल से काॅफी खरीद कर लाओगे और हम साथ में पिएंगे,, तुम आफिस के उन कंजूस सर की कहानियां बताओगे और हम तुम्हें एक टक हंसते हुए देखकर बस वैसे ही हमेशा देखेंगे...
अब बस में बैठने पर खिड़की के बाहर झांकते हुए लगता है जैसे तुम आगे की सीट पर बैठकर पीछे घुमकर हमें देखोगे और मेरे ये कहने पर कि साथ में नहीं बैठ सकते थे, इस पर ये कहोगे कि मैं तो चाहता था, पर बैठ नहीं पाया...
जब कभी आटो रिक्शा में बैठते हैं तो याद आता है वो चंडीगढ़ का सफ़र जहां तुमने मेरे सर पर हाथ रखकर देखा था कि बुखार ठीक हुआ कि नहीं, बस का सफ़र हमें बहुत तकलीफ़ देता है कैसे बताएं तुम्हें खाने का सामन है जेशू के पास ये बोलकर दोस्त से मेरे करीब बैठना.... और पीछे बैठे प्रेमी जोड़े को देखकर दोस्त के साथ हंसना, कि वो क्या कर रहे हैं पीछे घुमकर देखो , और एका एक मैं अब पीछे घुमती हूं तो मेरे आंसू बाहर नहीं आ पाते मेरे गले में दर्द बनकर वो इस क़दर चुभते हैं जैसे कोई एक बार गले लगाए हमें और जी भर के रो लेने दें...
बहुत याद आती है तुम्हारी मां कसम ....
मुझसे ये तड़प कभी कभी बर्दाश्त नहीं होती है...
इतना याद करके तो मैं तुमसे दूर रहकर भी नहीं रोती थी जितना अब बिछड़ कर रोती हूं....
क्यों इस क़दर तुमसे प्यार हुआ हमें,
ये प्यार ही हमें अब सुकून की नींद भी नहीं देता....
# यादें # तड़प #
copied from :- # Yourquote #
© Jeshu