...

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ख़ुदा सबसे जुदा..
मस्जिद का मालूम नहीं, हाँ मुझ मे है इक ख़ुदा ज़रूर..
हुलिया क्या अब बयां करूँ , बस सबसे है वो जुदा हुज़ूर..

इसका भी है, उसका भी, मालिक है वो सबका ही
शराफत में, सआदत में, रहम में भी वही भरपूर
इल्म की बात ये वो समझे,जिसपे छाया उसका ही सुरूर
हुलिया क्या अब बयां करूँ, बस सबसे है वो जुदा हुज़ूर..

इश्क में रंग उसी का है, फूलोँ में है उसकी महक
बर्फ में ठंडक उसी की है, सूरज में उसकी ही दहक
दुनियां में उसको पाने के हर जगह अपने दस्तूर
हुलिया क्या अब बयां करूँ, बस सबसे है वो जुदा हुज़ूर..

मस्जिद का मालूम नहीं, हाँ मुझ मे है इक ख़ुदा ज़रूर..
हुलिया क्या अब बयां करूँ , बस सबसे है वो जुदा हुज़ूर..


.... गुलशन पाल चंबा
© GULSHANPALCHAMBA