...

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नासमझ दृष्टि
#कालीकुर्सी खालीसोच
भईया इस कुर्सी की क्या कीमत है बताना जरा। किस कुर्सी की, इसकी? पास पड़ी कुर्सी के तरफ़ इशारा करते हुए, भाई ने कहा। भाईजान इस दुकान में काम करने वाला एक सहायक है। तभी वह लड़की ने कहा नही भईया ये वाली नहीं, ये वाली तो मेरे प्रिय मित्र को पसंद ही नहीं आएगी। उसका पसंदीदा रंग काला है, मुझे वो जो दिख रही हैं वो वाली कुर्सी चाहिए। दूर पड़े शीशे के उस पार पड़ी एक अदबुध काली कुर्सी, बिल्कुल उस लड़की की असमझी सोच की तरह और एक व्यर्थ जुनून सी जान पड़ रही थी...
परंतु जब भाईजान और वह लड़की वहा दूर उस शीशे से उसपार पढ़ी हुई उस दृष्टि की ओर जाने लगे तो जाना की वहा कुछ था हि नहीं बल्कि वह शीशा तो दुकान की सीमा थी। जो बस उस दुकान में पड़ी अनेक वस्तुओं का एक मिलाजुला प्रतिबिंब दर्शा रहा था।

० अब मेरा एक सवाल आप लोगों से है कि आपको इस कहानी में क्या सार दिखा?

© Mr.man