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वृंदावन की माटी


शोभा नाम की औरत जिसकी बहन वृंदावन में रहती थी। एक दिन वह उसको मिलने के लिए वृंदावन गई। शोभा जो कि काफी पैसे वाली औरत थी लेकिन उसकी बहन कीर्ति जो कि वृंदावन में रहती थी ज्यादा पैसे वाली नहीं थी लेकिन दिल की वह बहुत अच्छी थी या यह कह सकते हैं कि दिल कि वह बहुत अमीर थी। उसका पति मिट्टी के घड़े बनाने का काम करता था। शोभा काफी सालों बाद अपनी बहन को मिलकर बहुत खुश हुई। लेकिन उसमें थोड़ा सा अपने पैसे को लेकर घमंड भी था वो कीर्ति के घर हर छोटी बात पर उसकी चीजों के में से नुक्स निकालती रहती थी लेकिन कीर्ति जो थी उसको कुछ ना कह कर बस यही कह देती जो बिहारी जी की इच्छा। लेकिन शोभा हर बात में उस को नीचा दिखाने की कोशिश करती। कीर्ति ने अपनी तरफ से अपनी बहन की आवभगत में कोई कमी ना छोड़ी उसने अपनी बहन का पूरा ख्याल रखा उसने उसको वृंदावन के सारे मंदिर के दर्शन करवाए और उनकी महिमा के बारे में बताया शोभा यह दर्शन करके खुश तो हुई और उसने महिमा भी सुनी लेकिन उसका इन चीजों में इतना ध्यान नहीं था बस दर्शन करके वापस आ गई।
उसको वृंदावन में रहते हुए काफी दिन हों गए। एक दिन वह अपनी बहन से बोली कि कीर्ति अब बहुत दिन हो गए तेरे घर को रहते हुए अब मुझे अपने घर को जाना चाहिए तो कीर्ति थोड़ी सी उदास हो गई और बोली बहन कुछ दिन और रुक जाओ। लेकिन शोभा बोली नहीं काफी दिन हो गए मुझे आए हुए घर में मेरा पति और बच्चे अकेले हैं उनको सास के सहारे छोड़ कर आई हूँ अब मैं फिर कभी आऊंगी। जब शोभा वापिस जाने लगी की कीर्ति जो कि शोभा की बड़ी बहन थी तो उसने अपनी छोटी बहन को उपहार स्वरूप मिट्टी का घड़ा दिया। घड़े को देखकर शोभा हैरान सी हो गई और मन में सोचने लगी क्या कोई उपहार में भी घड़ा देता है लेकिन कीर्ति के बार-बार आग्रह करने पर उसने अनमने से घड़ा ले लिया।
जब शोभा जाने लगी तो कीर्ति की आँखों में आँसू थे लेकिन शोभा...