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एक था जमींदार.....🎎
एक था जमींदार। वह बहुत अमीर था। उसके पास किसी बात की कमी नहीं थी, बस एक बात को छोड़ कर। वह बहुत गुस्सैल स्वभाव का था। किसी ने उसके चेहरे पर कभी हंसी नहीं देखी थी। नौकर उससे बहुत डरते थे। जमींदार जब लोगों को हंसते-खिलखिलाते हुए देखता तो और जल-भुन जाता। दरअसल उसका भी मन हंसने को करता था, लेकिन उसके चेहरे पर हंसी आती ही नहीं थी। सर्दी के दिन थे। जमींदार अपनी हवेली पर बैठा था। वहां से उसकी नजर सामने वाले मैदान पर गई। वहां एक फटी पोशाक पहने एक अजनबी बड़ी जोर-जोर से हंस रहा था। जमींदार उसे देख कर हैरान रह गया। उसने उस अजनबी के चारों ओर देखा, पर वहां आसपास कुछ भी ऐसा नहीं था, जिसे देख कर हंसी आए। फिर वह व्यक्ति क्यों हंस रहा था? जमींदार को बहुत दिमाग लगाने पर भी यह बात समझ नहीं आई। आखिर उसने अपने नौकर को बुलाया।
नौकर अजनबी के पास पहुंचा। अजनबी उसे देख कर भी जोर-जोर से हंसता रहा। नौकर बोला, ‘भाई हंसते ही रहोगे या यह भी बताओगे कि तुम हंस क्यों रहे हो? तुम्हारे पास रहने को घर नहीं, तन पर पूरे कपड़े नहीं। फिर भी हंस रहे हो, कमाल है। इतनी गरीबी में भी कोई कैसे हंस सकता है? वाकई बड़ी हैरानी की बात है।’ उसकी बात सुन कर अजनबी बोला, ‘भैया, दरअसल मैं हंसने की कोशिश नहीं करता, बस हंसी...