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प्रारब्ध की मार : सहज स्वीकार
प्रश्न:
आप किसी ऐसी चीज़ को कैसे स्वीकार करते हैं,
जिसे आप बदल नहीं सकते?

उत्तर:
✍🏼 हम उन चीज़ों का
तहे-दिल से स्वागत करते हैं,
जिन्हें हम बदल नहीं सकते।

क्योंकि हम मानते हैं, कि-
हमारे जीवन में अपरिहार्य घटनाएं
हमें किसी प्रारब्ध-कर्मसे
मुक्त करने के लिए ही आती हैं।

बिना डरे, बिना डिगे
उनका सामना करना ही
कर्म से मुक्ति का मार्ग है।

प्रारब्ध को अनमने-भाव से
स्वीकार करने पर,
एक नया कर्म बन जाता है।

इसलिए, जब स्वीकारना अनिवार्य हो,
तो हमें हमेशा अपने भाग्य को
खुशी से स्वीकार कर लेना चाहिए,
ताकि- कर्मों का भार कम हो जाए।

हमेशा याद रखें, कि- जीवन में
जो कुछ भी होता है,
वह हमारे भले के लिए ही होता है।

यह हमारी चेतना के
उद्विकास में मदद करता है।

जीवन में जितनी अधिक कठिनाइयाँ आएं,
समझिए, आप  उतना ही
ईश्वर के निकट होते हैं।

आप खुशनसीब हैं, कि-
ईश्वर आपको कर्म-फल भुगतान द्वारा
कर्म बन्धन से मुक्त कर,
खुद  में लीन कर रहा है।
अपने अहोभाग्य पर हर्षित हो जाइए।
***
ध्यान रखिए:
हमारे जीवन में कोई भी समस्या
बिना समाधान के प्रवेश नहीं करती है।

पानी पहले आया ,फिर प्यास!
पहले खाना आया, फिर भूख!
पहले चीज़ आई, फ़िर चाहत!

इसी तरह कई घटनाओं में ऐसा होता है।

यह साहस, धैर्य और विश्वास ही है,
जो हमें समस्या के भीतर छिपे समाधान को
खोजने में मदद करता है।

सबको सहर्ष स्वीकार कर!
कर्म-विधान को प्यार  कर!
🙏♥️🙏