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वसना और मोह के अंधकार से प्रेम दीपक प्रज्ज्वलित नहीं हो सकता।।
जैसा कि आप सब मेरी रचना में पढ़ा होगा जो एक असम्भव प्रेम गाथा अनन्त है मगर वह अन्तिम में पूर्ण हो जाती है ऐसा कहा गया है मगर यह कितना सत्य है यह तो आज मैं आपको बताने जा रहा है कि जब एक इस्त्री सच्चा प्रेम करती तो वो किसी भी हद तक जा सकती हैं मगर कुछ सवाल पूछे गए ग ए है जो कि सबको जानना बहुत जरूरी है स्पेशली उनके लिए जो एक संबंध में है क्योंकि यह एक ग़लती आप सबकी पूरी जिंदगी बर्बाद कर देती।।
इस लिए मैं आपका मिस्टर कन्फ्यूज्ड आज आप सभी को एक महत्वपूर्ण बात बताने जा रहा हूं।।
कृपया हमारा उद्देश्य किसी भी तरह से किसी को व्यक्तिगत रूप से ठेस पहुंचाने का बिल्कुल भी नहीं है।।
तो इसके लिए हम दो महत्वपूर्ण त्रुटियों के बारे मे बात करेंगे।।
दयालुता वचन कसम मोह वसना और प्रेम ।।
वसना और मोह की अंधकार की मशाल से प्रेम गाथा का चरित्र कदा भी पूर्ण नहीं हो सकता और न ही उसमें प्रेम रस की खूशबू आ सकती है।।
जैसा कि आप सब ने देखा होगा की इसके नाम ही स्त्री का चरित्र और संघर्ष दिखाया गया है मगर वो कब एक असुगनधित फूल में तकदील हो गया कुछ पता नहीं।।
मगर हां इतना कहा जा सकता है कि सैकड़ों छुअन बर्दाश्त कर झुकने के बाद भी एक जिस्म का उत्पन हो गया तो इस्त्री बड़ी कठोर रही और मोह और मया के इस जिस्मफरोशी सौदागर की एक छुअन के लिए वह बार बार मचल उठी थी तो क्या है ये-
प्रेम या वसना
एक प्रेमिका कह उसे बुलाऊ मत मठवाली माधविका या लैसवी वैशया या सैलवी रूपातनणा ।।-लेखक बता रहे -है कि कृष्णानंद और लैसवी वो एक रात की मुलाकात और जख्म से लेकर वसना की राह कैसे प्रारंभ हुई।।
मगर जिस्म की बू पाने खातिर वो दोनों मदद के बहाने एक दूसरे के बहुत करीब आ जाते और इसकी शुरुआत कृष्णानंद नायक के नाम से होती है।।
जब वैशया उसकी खिममत कर उस रात उसके ही साथ रूकी हुई होती है और तब कुछ ऐसा ही हुआ जो क्या था और सही था या नहीं यह कह पाना मुश्किल और कठिन और कुछ हद सही हुआ था कह सकते हैं।।
बहकना,गलत विचार, उत्तेजना , वसना ,मोह , दयालुता वचन , कसम ।।
जब एक वैशया एक मठवाहिनी और एक रूपसवना और एक प्रेमिका बन अपनी सीमा भूलकर वसना की ओर अग्रसर होकर उन्होंने उसे प्रेम कहा जो कि एक असंभव प्रेम गाथा के एक श्राप का भागीदार बनना मना जाएगा क्योंकि एक आत्मसमर्पण ही प्रेम गाथा का चरित्र और प्रतीक कहलाता है।। और फिर जब कृष्णानंद और लैसवी दोनों के बीच शारीरिक संबंध स्थापित हो गए तो डरे
तो दोनों ही मगर लैसवी उस एक भूल के कारण कुछ बोल ही नहीं पा रही थी।। वो हर बार अलग अलग युवती के साथ रात गुजार चुकी थी मगर कभी उसे किसी भी गृहक की छुअन से कोई भी उत्तेजित होने का एहसास नहीं हुआ और काई बार अलग अलग तरीके से यौन संबंध बनाने में भी उसे कोई गर्माहट का कोई एहसास नहीं हुआ था तो फिर आज उस एक कृष्णानंद नामक एक गृहक की ऐसी क्या छुअन थी कि वो उस पर खुद को भी निछावर कर देना चाहती थी।।
हां शायद ऐसा कहा जाता है कि कृष्णानंद ने अपनी उस हालत के गंभीर होने पर भी वहां से जाने की कोशिश की थी मगर उस समय एक लड़की ने उस अपनी कसम देकर रूक दिया और बदले में उस एक युवक ने उसे अधनंगी देख बोला कि हम दोनों एक दूसरे के साथ ऐसे हैं और तब की बात है जब अपनी साड़ी आधी उतार चुकी थी तो वो कहती की बाबू जी इसमें ऐसी कोई बात नहीं है क्योंकि मैं एक वैशया हूं और अगर आप मुझे ऐसे देख भी रहे तो इसमें कोई पाप नहीं है।। और फिर इस पर कृष्णानंद नजरें झुका कर बोल रहा है कि मैं एक पुरुष हूं और तुम एक स्त्री हो और तुम्हें निर्वस्त्र देकर मुझे पाप लगेगा नहीं नहीं और फिर वो नजरें झुकाए ही होता है तब शाम और अंधकार छा ने लगता है और मौसम भी भयानक रूख ले रहा था तेज बारिश और बजली कि कड़कड़ाहट से वो अपनी कमरे की दीवार से जा समटी तभी कुछ ऐसा हुआ तो पुरी गाथा का आश्चर्य चकित दृश्य कहलाएगा।। जब उस वैशया लड़की बिना किसी हिचकिचाहट के कुछ सोच बिना उसे उठाकर अपने बाजार में एक रात का मेहमान समझकर उसे ला ती है और उसकी मरमपटटी करने के बाद जब उसे लगभग एक रात हो चुकी थी तो दूसरी दिन की सुबह से शाम तक धीरे धीरे नजदीकियां बढ़ रही थी और जब रात हुई वो आज नीचे लेटी थी मगर दो दिन से तेज बारिश आंधी के चलते उसे रात को नींद नहीं आ रही थी और कृष्णानंद भी दो दिन से आधी नींद ही सो पा रहा था मगर वो बिजली की दूसरे दिन की काडकडाहट से वो आज कृष्णानंद से जा लिपटी और आज वो बिना कपड़ों के थे दोनों और फिर क्या लैसवी की कमर पर कृष्णानंद का हाथ जाते ही वो मचल उठती है। और वो कृष्णानंद को चूमने और चाटने लगती और कृष्णानंद भी उसे चूम और चाट रहा होता हैं उसका एक लडकी स्तन पर और दूसरा हाथ सीने पर और हथियार लड़की की योनि के भीतर था जिसे वो अन्दर रह रहकर कर रहा था और वो आह आह आह ओह ओह ओह कर रही थी और उसकी गान्ड में उसने अपना डेढ़ इंच लम्बा और कड़ा लन्ड अन्दर कर उसे उसकी अनगिनत चीखें निकल दी और वो बस पूरी रात आह आह ओह आह करती रही मगर वो उत्तेजित होकर सेक्स के और भी उत्साहित हो गई।।
और तीसरे दिन जब होश में आए दोनों तो उनकी यह भूल एक असम्भव प्रेम गाथा की कील बन गई -
फिर क्या उस समय तो उसकी जुबान पर रोक लगाने के लिए उसने उससे एक नहीं दो दो छल किए पहला उसे अपनी जिस्म की भूख बुझानी थी और दूसरा ताकि उसे लगे वो सचमुच उसे प्रेम करता है मगर जब शादी के कुछ दिन बीते तो पता चला कि उसका किसी शिवानी शाह के साथ शारीरिक संबंध है तो फिर उसने ऐसे एक हल सोचा कि अगर वो मरने का नाटक करे तो हकीक़त खुद सामने आ जाएगी और वो कभी सजनी तो कभी मेघना बनकर उसपे नजर रखने ल गती है और एक दिन कड़ी धूप में गर्म हवा में उसका वो पीछा कर रहा होता हैं कि अगर वो उस तक पहुंच जाए आज उसका खेल खत्म कर देगा मगर श्रृष्टि को यह मंजूर नहीं था और एक बेहद भयानक हादसे के बाद भी वो भाग्य वर्ष से बच तो ग ई मगर उसका चेहरा पूरी तरह घायल हो गया और वो बहती एक आजामवनती इलाके एक गांव में एक नोराग किनोर नाम एक युवक के पास आ पहुच ती है जो कि एक ईमानदार आदमी तो था नहीं मगर एक बलात्कारी था जो कि एक शैशवी रिहाद के बेहरमी से उसे पूरी नर्क के खीचड़ में सौनद चुका था।।
और अब एक भयानक दृश्य है जिसमें एक वैशया और एक बलात्कारी की भेंट हो जाती इतिफाक से वो मुरझित थी तो वो और भी उत्साहित हो जाता उसे उठाकर अपने घर ले आता और उसके होश में आने कि परतीछा करने लगता है।।
एक वैशया और एक बलात्कारी का संवाद वैशया के होश आते ही।।
यह कहानी एक असंभव प्रेम गाथा का भाग भागीदार है।।
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