...

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एक "मर्द से ही सिखा है मैने.. अकेले मे रोने का हूनर..!!
Once my father said ...

ये मेरी घर की "सबसे छोटी बेटी..
एक दिन घर की" सबसे बड़ी बन जायेगी..!!!

और आज

जिम्मेदारियां वक्त से पहले जगा देती है...
अपने लिए कम और अपनो के लिए जीना सिखा देती है...
सब ठीक है...!!!
खुद को ही बोलकर एक धोखे में रखना पड़ता है..!!!
खामोशियों में सुकून ढूंढना पड़ता है...
हर रोज तुमको खुद में ही
"खुदको बाकी रखना पड़ता है...!!!

हर कोई आता है ,
अपनी मर्जी थोप कर चला जाता है..
सबको चाहिए हम ही उसे समझे_
पर हमे समझना कोई नही चाहता है...!!!
प्यार की उम्मीद सब करते है..
पर जब ,
हम गुस्सा करते है तो हमें भी तकलीफ होगी कुछ ''
ये समझना कोई नही चाहता है...!!!


और फिर समझ में आता है...
की.. अकेले में रोया कैसे जाता है..!!!
हर दिन खुद के ही लिए जीने का
बीज बोया कैसे जाता है...!!!!!

और आज जब बीते वक्त में
"बाबा की कही बाते याद करती हू....
तो समझ आता है..

की

अकेले में रोने का हुनर एक" मर्द से कैसे सीखा जाता है...!!!

और अब...
मैंने खुद ही अपनी अरमानों की मय्यत पर
अपनी जिंदगी को आसान किया है..

"ख्वाब...
"ख्वाहिशें ...
"हसरतें...
बड़ा नुकसान कर रही थी...

मैंने सबका "पिंडदान किया है...!!!

© A.subhash

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