...

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मैं और वोह?
लाखों की भीड़ मे तन्हा सा रहता था मै,
अकेलेपन मे मेरी मुस्कुराहट बन कर हसाया करती थी वोह।

जीवन की भाग दौड़ मे उलझा रहता था मै,
मेरी जिंदगी की गांठों को सुलझाया करती थी वोह।

सुखी नदी के जैसे शांत रहता था मै,
पानी की लहरों की तरह लहराया करती थी वोह।

रात भर के अंधेरे से डरा करता था मै,
सुबह की पहली किरण सी बनकर आया करती थी वोह।

ख्वाबों मे सिर्फ़ उसे अपना सोचा करता था मैं,
हकीकत मे सबसे एक जैसे पेश आया करती थी वोह।

जुबान के रास्ते सब बताना चाहता था उसे मेरे दिल मे था जो,
दिमाग़ ने रोका और पूछा मुझे तो बता तेरी कोन थी वोह?

मेरी कोन थी वोह ?

मेरा खयाल थी वोह, सर्दियों मे ओहड़ा हुआ शॉल थी वोह, जिसका जवाब न हो वैसा सवाल थी वोह , मेरी कोन थी वोह पता नहीं, पर क्या कमाल थी वोह । ❣️

© Ritikarora