...

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अनकहा अहसास भाग- 1-
चांद पर जा पाई हैं, केवल गिनती की नारी,
उनके अलावा बाकी सब,
हैं पुरुषों के जुल्म की मारी।।
जितेन्द्र इन पंक्तियों को एक लेख में पढ़ रहा था।
लेख का शीर्षक था,
"विदेशी नारी बनाम भारतीय नारी " वह आरंभिक पंक्तियों से ही सिहर उठा था।उसे सहज भाव से रचनाकार के बारे में प्रोफाइल में पढ़ने की उत्सुकता हुई।रचना की लेखिका थीं सुनयना चक्रवर्ती। पूरा लेख पढ़ने के बाद जितेन्द्र ने दिए गए मेल एड्रेस पर अपनी प्रतिक्रिया भेज दी।
वह इस लेख से बहुत ही प्रभावित हुआ था और
नारी के उत्थान पर कुछ सुझाव देना चाहता था।
जितेन्द्र कालेज के समय से ही अच्छा वक्ता रहा था एवं अनेक वाद विवाद प्रतियोगिताओं में भाग लिया था।अगले ही दिन मेल में उत्तर आ गया था। उत्तर में धन्यवाद ज्ञापन के बाद अपने विचार लिखे गए थे।भारतीय नारी के शोषण व प्रगति में बाधक कारणों पर उदाहरण सहित तर्क दिए गए थे।
पढकर,वह विगत की स्मृतियों में खो गया।बारह साल पहले,जिला स्तर पर " नर या नारी,समाज में किसका योगदान भारी विषय पर एक वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन हुआ था।प्रत्येक विद्यालय से एक प्रतिभागी का चयन होना था।इसके अतिरिक्त अठारह वर्ष से कम आयु के ऐसे दस प्रतिभाशाली लेखक-लेखिकाओं का जिनकी न्यूनतम पांच रचना प्रकाशित हो चुकी हों,चयन होना था।जितेन्द्र के सात लेख प्रकाशित हो चुके थे।किंतु वह विद्यालय का प्रतिनिधित्व करना चाहता था।
विद्यालय ने सर्वोत्तम प्रतिभागी के लिए एक वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन किया।जितेन्द्र ने उसमें भाग लिया।
किंतु यह क्या....
परिणाम घोषित होने पर सुनयना घोष का नाम सुनकर वह निरुत्साहित हुआ। विद्यालय की ओर से सुनयना के नाम का चयन हो गया।
किंतु प्रतियोगिता में भाग लेकर वह जिला स्तर पर प्रतिनिधित्व कर पुरस्कृत होना चाहता था।इसलिए जितेन्द्र ने दस प्रतिभावान लेखकों के चयन के लिए आयोजकों को अपनी प्रविष्टि भेज दी।
चयन मंडल ने उनके लेख पढे और जितेन्द्र का चयन कर लिया गया।
नियत दिन पर प्रतियोगिता हुई।सुनयना और जितेन्द्र पक्ष और विपक्ष से थे।सभी वक्ताओं ने अपने तर्क दिए।
परिणाम घोषित हुआ। सुनयना को प्रथम और जितेन्द्र को द्वितीय स्थान प्राप्त हुआ था।
विद्यालय को एक साथ दो प्रतिभावान छात्र मिले।विद्यालय ने उन दोनों को सम्मानित किया।विद्यालय की शिक्षा समाप्त होने पर वह दिल्ली से स्नातक करने लगी एवं जितेन्द्र इलाहबाद विश्व विद्यालय से इलाहबाद में हिन्दी (आनर्स) करने लगा।सुनयना के पिता इलाहाबाद में ही डाक्टर थे।वह उन की इकलौती संतान थी।
जब भी छुट्टियों में वह घर जाती, जितेन्द्र उससे मिलने अवश्य जाता था। किंतु चार वर्ष बाद...
सब बदल गया।वे सब सपरिवार कहीं चले गये।
कुछ भी पता न चला कि वे कहां रह रहे हैं।
किंतु क्या यह वही बारह वर्ष पूर्व वाली सुुनयना थी,या महज एक नाम का संयोग....।
ट्रन,ट्रन,ट्रन...... दरवाजे पर बैल बजी तो वह वर्तमान में लौट आया।
कोरियर आया था।एक पत्र था।उसने खोलकर देखा।हिंदी साहित्य अकादमी की ओर से उसको एक संगोष्ठी में उपस्थित होकर अपने विचार रखने को आमंत्रित किया था। आज से बीस दिन बाद संगोष्ठी थी।वापसी मेल से अपनी स्वीकृति की सूचना देने को कहा था।
जितेन्द्र ने फौरन अपनी स्वीकृति मेल द्वारा भेज दी।
पापा,आज विद्यालय में आपको पेरेंट्स मीटिंग में चलना है।संजीव ने कहा तो उसे याद आया कि आज बेटे के विद्यालय जाना है।
वह उठा और वाशरूम की तरफ बढ गया।
जारी है............


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