...

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इश्क़ और गलियां
अब तो अनजान न रहीं
वो गलियां मुहब्बत की
पता मालूम है उन्हें
दिल-ए- वेकरार का ,
वो भी भूल न सके
इश्क़ कुछ इस कदर था
दिल टूटे तो टूटे कैसे
एक तरफा ही सही
पर हमें उनसे ही प्यार था ,
धड़कन बनकर धड़कती है आज भी
वो अब भी जान है मेरी
थोड़ा नाराज ही सही
पर उन्हें भी हमसे प्यार था,
वो निकले भी किस गली में
मुहब्बत को खोजने
जहाँ चाहत न थी उनकी
न कोई चाहने वाला था,
अक्सर..उन्ही गलियों में खोजते है
इश्क़ को हम भी
जहाँ न चाहत मिले कभी
न चाहने वाला,
वो मोड़ जहाँ से वो दिखे नहीं कभी
आज भी याद है हमें
उनकी नजरों में भी प्यार था,
ये गलियां इश्क़ की अब भी
अनजान जान पड़तीं हैं उनको
शायद यही सबूत है चाहत का उनकी
वो भूले नहीं हैं अब तक उन्हें अबभी प्यार था,




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