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प्रेम जो आत्मा से है...
प्रेम के अनगिनत रूप देखे होंगे तुमने... मां बाप का अपने बच्चों से प्रेम, भाई बहन का प्रेम, बहन बहन का प्रेम,पति पत्नी का प्रेम, दो प्रेमियों का प्रेम, भगवान और भक्त के बीच का प्रेम,
यदि आपसे पूछा जाए कि प्रेम का सच्चा रुप कौन है तो सबकी अपनी अपनी राय होगी.. कोई मां और बच्चे का प्रेम बताएगा तो कोई बाप और बच्चे का..तो कोई भगवान और भक्त का,
आप सब अपनी जगह सही होंगे किंतु प्रेम वही सच्चा, पवित्र, अमर, अजर है जहां स्वार्थ नाम मात्र भी ना हो।
मां बाप बच्चे को जन्म देते हैं.. मां बाप और बच्चा दोनों को ही एक दूसरे से कुछ ना कुछ चाहिए होता है.. वो अपने मां बाप से अच्छी परवरिश की उम्मीद करता है अपनी सब आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रेम करता है और मां बाप बच्चे को यह सोचकर बड़ा करते हैं कि ये कल बड़ा होकर हमारे बुढ़ापे की लाठी बनेगा, दोनों को एक दूसरे से स्वार्थ होता है शायद इसीलिए एक उम्र के बाद इनके बीच दूरियां आ जाती हैं और जब दूरियां आती हैं तो दोनों को ही तकलीफ होती है, क्योंकि इनका रिश्ता एक समझौते पर निर्भर होता है,
ठीक उसी प्रकार भाई बहन हैं, पति पत्नी के रिश्ते में किसी तीसरे के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता, क्योंकि इसमें किसी तीसरे के लिए कोई जरूरत नहीं होती है ऐसा कहते हैं...,
किन्तु एक रिश्ता ऐसा भी होता है जिसमें यदि प्रेम है तो किन्तु,परन्तु, क्यों, कब, कहां, कैसे, कब से,कब तक कुछ भी मायने नहीं रखता, बिना सवाल किए बस प्रेम,और सिर्फ किया जाता है वो होता है प्रेमियों का रिश्ता.. मैं उन प्रेमियों की बात बिल्कुल नहीं कर रही जो देह से प्रेम करते हैं, दैहिक सुख प्राप्त करने के मन की चंचलता को प्रेम का नाम दे देते हैं,या जो शारीरिक आकर्षण से उपजे भावों को प्रेम का नाम दे देते हैं... हम उन प्रेमियों की बात कर रहे हैं जिनके हृदय में प्रेम है,जो हृदय से जुड़े हैं, जो ये नहीं सोचते कि यदि हम ना मिलें तो प्रेम नहीं, इसमें विश्वास होता है इस प्रेम में कोई बन्धन नहीं होता है इसमें कोई सीमा नहीं होती...ये तो प्रेम है जो हर आत्मा को परिपूर्ण करता है, प्रेम कभी नहीं खत्म होता क्यूंकि हमारी आत्मा का एक संस्कार प्रेम भी है, हमारी आत्मा का वास्तविक स्वभाव प्रेम है तो ये कभी नहीं खत्म होता।
प्रेम उनकी भक्ति भी है, आराधना भी है,पूजा भी है, सुख भी है शान्ति भी है, विश्राम भी है और वही उनकी शक्ति भी है,जो निस्वार्थ है वही प्रेम है,बाक़ी तो व्यापार है...जहां लेन देन होता है और बराबर का होता है। किन्तु प्रेम स्वच्छ, पवित्र हृदय देखता है,
बिना समय की परवाह किए, ना कुछ पाने की इच्छा से किया गया प्रेम ही सत्य है और ये तभी होता है जब हम आत्मा से प्रेम करते हैं शरीर से नहीं।
© आकांक्षा मगन "सरस्वती"