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स्ट्रीट लाइट पार्ट- l
ये कहानी है राधिका की। राधिका उत्तराखंड के जिले चंपावत में देवीधुरा में रहती थी। राधिका के पिता का देहांत तभी हो गया था, जब वो सिर्फ, दो साल की थी। तभी से उस की माँ ने ही उसे पाला। उसकी माँ लोगों के घर का काम किया करती थी पर उसने कभी नहीं चाहा, कि उसकी बेटी भी ये सब करे। इसलिए उसकी माँ ने उसकी पढ़ाई के लिए हर संभव कोशिश की। घर पर बिजली ना होने की वज़ह से, राधिका शाम के बाद अपनी पढ़ाई सड़क पर, स्ट्रीट लाइट की रोशनी में करती थी। राधिका अपनी माँ से बहुत प्यार करती थी और उसको अपनी माँ का दूसरों के घर में काम करना बिलकुल पसंद नहीं था। इसलिये, वो अपनी पढ़ाई पर पूरा ध्यान देती और क्लास में हमेशा अव्वल आती। पढ़ाई के अलावा राधिका को कहानी लिखने का बहुत शौक था। एक दिन राधिका हमेशा की तरह शाम के समय अपनी पढ़ाई के लिए, सड़क के किनारे लगी स्ट्रीट लाइट के नीचे जाकर बैठ गई और पढ़ने लगी। कुछ वक़्त बीता और पढ़ाई करने में, उसे ये पता ही नहीं चला की रात का दस बज गया है। अब राधिका को लगा मुझे काफी वक़्त हो चुका है, अब घर जाना चाहिए।जैसे ही राधिका घर जाने के लिए उठी, उसने देखा कि सड़क के किनारे एक घायल खरगोश है। राधिका ने सोचा शायद किसी गाड़ी की वज़ह से ऐसा हुआ होगा। राधिका उस खरगोश के पास जाती है और देखती है कि उसके टांग पर एक काँटा लगा है। राधिका तुरंत उसका काँटा निकाल देती है, और अपने रुमाल से उसके घाव को साफ़ भी करती है। तभी वो खरगोश एक सुन्दर परी में बदल जाता है। राधिका उसे देख कर हैरान रह जाती है। तभी वो परी उससे कहती है, राधिका डरो मत, मैं एक परी हूँ। तुम बहुत अच्छी इंसान हो, इसलिए मैं तुम्हें कुछ देना चाहती हूँ। वो अपने जादू से एक पर्स बनाती है और राधिका को देते हुए कहती है कि, मैं तुम्हें एक मंत्र देती हूँ, जब भी तुम सुबह सूरज देखके इस मंत्र का उच्चारण करोगी, तो ये पर्स पैसे से भर जाएगा। ये कहकर परी गायब हो गई। इस बात से राधिका बहुत खुश हुई,और जल्दी से ये सब घर जाकर अपनी माँ को बताया।उसकी माँ इस बात को उसकी कोई कहानी मानकर टाल देती है। अगले दिन सुबह सूरज को देखके और परी से मिले मंत्र का जप करके जब राधिका उस पर्स को देखती है, तो पाती है कि पर्स पैसों से भर चुका है। उसकी माँ ये सब देखकर हैरान हो जाती है और उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहता। उसकी माँ उससे कहती है कि अब हमारे दिन बदल जाएंगे, अब तुझे सड़क पर पढ़ना नहीं पड़ेगा, ना ही मुझे दूसरों के घर काम करना पड़ेगा, अब मैं तुझे अच्छे स्कूल में पढ़ा पाऊँगी। धीरे धीरे समय बीतता है और राधिका का जीवन बिल्कुल बदल जाता है। एक दिन राधिका अपनी माँ को लेकर सिनेमा हॉल में नई फिल्म देखने जाती है। वो वहां पर सबसे आगे वाली सीट पर बैठकर फिल्म देखते हैं तभी, राधिका को पीछे से एक आवाज आती है। राधिका जरा ध्यान लगाकर उसे सुनने की कोशिश करती है।
राधिका राधिका..
आज सड़क पर ही सोने का मन है क्या।
राधिका की आँख खुलती है और वो पाती है कि वो स्ट्रीट लाइट के नीचे पढ़ते पढ़ते सो गई थी।
मैंने कहा था ना, राधिका को कहानियां बहुत पसंद हैं, और ये सब उसकी सपनों में गढ़ी गई उसकी एक कहानी ही थी।
राधिका उठती है, और अपनी माँ से कहती है, अम्मा जब हम अमीर हो जाएँगे तब मैं तुम्हें नई फिल्म दिखाने लेके जाऊँगी।
और हाँ, हम सबसे आगे की सीट पर नहीं बैठेंगे..
राधिका अपनी किताबें पकड़कर अपनी माँ के साथ घर जा रही होती है, तभी उसकी एक किताब नीचे गिर जाती है। राधिका उस किताब को उठाने के लिए झुकती है तो देखती है, कि सड़क के किनारे किसी खरगोश के पैरों के निशान हैं।
तो क्या वो एक सपना ही था, या कुछ और छिपा है इस कहानी में कहीं?

© AK. Sharma