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#अल्हड प्रेम
आज मौसम अपने चरम मिजाज दिखा रहा था सुबह से ही चारोंओर धूंध ही धूंध छायी थी। मुश्किल से दो तीन मीटर तक नजरें फैलाकर धूंधला सा देख सकते थे। बाजार में भीड़ भी बहुत कम थी।
दिगु यानि दिग्विजय सुबह सुबह दूध आदि चीजें लेने निकला था । बाईक को घर छोड़कर मौसम के असबाब को पुरी मस्ती से आत्मसात करता हुआ आगे बढ रहा था। अल्हड़पन अभी छू ही रहा था और नादानी पुरी तरह छुटी नहीं थी। कोलेज अभी अभी जोइंट किया था। पढनेमें प्रेम-कहानीयाँ पढकर अभी उसके ह्रदय पटल खुल ही रहे थे ! पंख नहीं खुले थे... ऊंची उडान तो अभी बहुत दूर की बात थी। टोली में कुछेक दोस्त पोर्न की बाते, अनुभव सहित बताते.. लेकिन वह इसमें दिलचस्पी नहीं बताता। फिर भी कोलेज की हवा उसके मन- ह्रदय को आप्लावित करने लगी थी।
वह थोड़ा सा बेध्यान - सा, मौसम का मिजाज देखते हुए पैदल आगे बढ रहा था, कि अचानक इसके पडोस में कोई चल रहा होने की आशंका हुई ! उसने ध्यान से देखा तो कोई शोल- दुशाला में लिपटा.. न नारी, ना पुरूष - जैसा कोई सटकर चल रहा था । ध्यान से देखने पर उसे लगा, कि इसे कहीं देखा है...! पर कहां ? कौन है यह ?... उसे याद नहीं आ रहा था। उस लडके नुमा लडकी ने अपनी लडकीवाले आवाज में आवाज दी... 'हेय..! दिग्विजय..!'... तो दिगु को लगा, कि उसके पडोसी या कोई जान पहचान वाले ने बुलाया होगा..! दो कदम चलकर उसने दिगु का हाथ पकड लिया और उसका रास्ता रोककर खडी रह गई ! साश्चर्य दिगु उसे पहचानने के लिए अपने दिमाग पर जोर लगाने लगा..! स्वयं पुर्वी ने - उस लडकी का नाम पुर्वी था - उसने अपने नकाबपोश चेहरे से झट से मुखौटा हटाया.... तब जाकर दिगु को पहचान हुई ! 'अरे ! तुम पुर्वी ! इधर कैसे..? कहां जा रही हो..?' एक साथ साश्चर्य कई सवाल ..!!
पुर्वी उसके स्कूल के दिनों की सहपाठी थी , लेकिन पिता की नौकरी की वजह से दूसरे शहर में जाना पडा था। अभी वह इस छोटे से शहर में निवृत पिता के साथ बस गई है। यह जानकर दिगु का दिल गुल गुल हो गया !!
बात बात में पुर्वी ने दिगु को पुछ लिया कि 'सींगल हो या कोई गर्लफ्रेंड.?!' दिगु अचकचाते हुए, हकलाते हुआ 'सींगल' ही बोल पाया, हालांकि ह्रदय में गुद गुदी हो रही थी । बवंडर सी इस लडकी मतलब पुर्वी ने तो दिगु को ओफर भी दे दिया.. 'साथ जीने का' ! दिगु कुछ समजे उससे पहले वह अपनी राह निकल ली थी !
दिगु को आज पहली बार पुर्वी को लेकर विचित्र एहसास हुआ । वह कुछ समज नहीं पा रहा था, कि पहले ऐसी कोई अनुभूति तो नहीं होती थी ! आज बचपन की सहपाठी पुर्वी अल्हड पुर्वी बन चुकी है ! उसके ह्रदय में उसके लिये प्यारवाली फिलिंग्स होने का एहसास होने की बात समजते देर नहीं लगी ..! उसके ह्रदय में भी उसका ख्याल बार बार आने लगा ! उसका दिल उसे देखने की - सोचने की ममत पर अड़ सा गया सा उसे महसूस हो रहा था !
दुसरे ही दिन कॉलेज से घर लौटकर देखा, तो
पुर्वी के मम्मी पप्पा और पुर्वी दिगु के मम्मी-पापा के साथ गप- शप लडा रहे थे। उसके इंतजार में बैठे हों वैसे आते ही दिगु का परिचय कराने लगे ! इस समय कुछ भी उसकी समज में नहीं आ रहा था, कि क्या हो रहा है ?
दिगु की मम्मी ने बात छेड ही दी कि' दोनों परिवार की पुरानी दोस्ती, रिश्तेदारी में बदल जाय तो कैसा रहेगा.? अब सिर्फ दिगु की ही संमति बाकी है ! '
थोडा सा हां ना करने के बाद दिगु की हां से खुशियों की बौछार सी छा गयी ..! इधर सभी खुशखुशाल होकर शादी की तिथियों के बारे में सोचने में उलझ गये ।
उधर दिगु और पुर्वी धीरे से, चुपके से खिसक लिये और अपने भावि जीवन के स्वप्ने सजाने में उलझ गये...!!

© Bharat Tadvi