#अल्हड प्रेम
आज मौसम अपने चरम मिजाज दिखा रहा था सुबह से ही चारोंओर धूंध ही धूंध छायी थी। मुश्किल से दो तीन मीटर तक नजरें फैलाकर धूंधला सा देख सकते थे। बाजार में भीड़ भी बहुत कम थी।
दिगु यानि दिग्विजय सुबह सुबह दूध आदि चीजें लेने निकला था । बाईक को घर छोड़कर मौसम के असबाब को पुरी मस्ती से आत्मसात करता हुआ आगे बढ रहा था। अल्हड़पन अभी छू ही रहा था और नादानी पुरी तरह छुटी नहीं थी। कोलेज अभी अभी जोइंट किया था। पढनेमें प्रेम-कहानीयाँ पढकर अभी उसके ह्रदय पटल खुल ही रहे थे ! पंख नहीं खुले थे... ऊंची उडान तो अभी बहुत दूर की बात थी। टोली में कुछेक दोस्त पोर्न की बाते, अनुभव सहित बताते.. लेकिन वह इसमें दिलचस्पी नहीं बताता। फिर भी कोलेज की हवा उसके मन- ह्रदय को आप्लावित करने लगी थी।
वह थोड़ा सा बेध्यान - सा, मौसम का मिजाज देखते हुए पैदल...
दिगु यानि दिग्विजय सुबह सुबह दूध आदि चीजें लेने निकला था । बाईक को घर छोड़कर मौसम के असबाब को पुरी मस्ती से आत्मसात करता हुआ आगे बढ रहा था। अल्हड़पन अभी छू ही रहा था और नादानी पुरी तरह छुटी नहीं थी। कोलेज अभी अभी जोइंट किया था। पढनेमें प्रेम-कहानीयाँ पढकर अभी उसके ह्रदय पटल खुल ही रहे थे ! पंख नहीं खुले थे... ऊंची उडान तो अभी बहुत दूर की बात थी। टोली में कुछेक दोस्त पोर्न की बाते, अनुभव सहित बताते.. लेकिन वह इसमें दिलचस्पी नहीं बताता। फिर भी कोलेज की हवा उसके मन- ह्रदय को आप्लावित करने लगी थी।
वह थोड़ा सा बेध्यान - सा, मौसम का मिजाज देखते हुए पैदल...