"आखरी रक्षाबंधन"
बात उन दिनों की है जब मैं कॉलेज में पढ़ती थी! एक दिन कॉलेज से घर लौटी तो देखा सभी लोगों के चेहरे उतरे पड़े हैं! मेरी लाख पूछने पर भी मेरी मां ने मुझे कुछ नहीं कहा..इसकी भी एक वजह थी क्योंकि बचपन से ही मुझे हृदय की बीमारी थी मेरी हर छोटी मोटी बातों पर दिल की गति तेज हो जाती थी, जो संभाले नहीं संभलती थी
इसलिए मां ने झल्लाते हुए मुझसे कहा....जिद मत करो थक कर आई हो, हाथ-मुंह धोकर खाना खा लो पहले! उन्हें पता था कि जो हुआ है उसे सुनने के बाद किसी को भूख प्यास नहीं लगेगी, इसलिए उन्होंने में लाख पूछने पर भी सच्चाई नहीं बताई।
मैंने मां का कहा मान खाना तो खा लिया पर अंदर ही अंदर मुझे संदेह हो रहा था कि कुछ तो बात है जो लोग मुझसे छुपा रहे हैं, शायद मेरी तबीयत को लेकर! पर बात घर की थी और कब तक छुपती, सो सच्चाई सामने आ ही गई! मैंने पापा को कहते सुना कि भैया को कैंसर है! यह सुन मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई, मेरे आंसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे! घर का इकलौता बेटा! सब को
उनपर इतना नाज़ था, जो आई० ए० एस० बन कर सबका सपना साकार करने वाला था, उसके साथ नियति ने कैसा खेल खेला! भैया...