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सोच का दायरा देखिये जनाब,( मर्दानी ,क्रांतिकारी सोंच )

अगर सब घर वालों की इच्छा हो कि लड़की की शादी अमुक व्यक्ति, अमुक जगह पर कर दी जाए ,लेकिन लड़की का मन न हो,
फिर भी वह अपने घर वालों की निर्रथक इच्छाओं का भी मान रखते हुए स्वयं के जीवन को ,किसी ऐसे व्यक्ति के साथ झोंक दे ,जहाँ / जिसे वह स्वयं किसी भी तरह से स्वीकार नहीं कर पायेगी ,
तो वह लड़की संस्कारी है, घरवालों की बात मानने वाली है, बहोत समझदार है ,सबको अपना समझती है, किसी का कहना नहीं टालती है ,
कुछ ऐसी कही जाएगी।
लेकिन अगर वही लड़की यह कह दे कि मुझे यह रिश्ता मंजूर नहीं है,
तब देखो ,
लड़की की संगत खराब है, लड़की बदचलन है, इसकी पढ़ाई कराने का मतलब न निकला, इतना अच्छा रिश्ता है, लड़की सही नहीं है,
और न जाने जाने क्या उलाहनें उस बेचारी को सुननें पड़ते हैं,
और ये उलाहने देने / सुनाने कोई अमेरिका का Brand ambassador नहीं आता है,
ये वही घरेलू लोग हैं जिनको अभी तक लड़की संस्कारी , होनहार लग रही थी।

अब आप सोंचिये,
लड़की की शराफत उसकी हां से ही आंकी जाती है,
उसकी स्व-की इच्छाओं का मान कोई नहीं रखता ,पता नहीं क्यूँ ,
मुझे तो लगता है " लड़की " ऐसा प्राणी होता है ,जिसका जीवन तो हम इंसानों जैसा ही होता है, पर उसमें इच्छाएं नहीं होतीं, तभी तो उसकी इज्जत न मायके में कोई करता और ससुराल का तो सवाल ही नहीं उठता है।

अगर लड़की स्वयं के जीवन को नजरअंदाज करके केवल घर के सदस्यों के इच्छाओं की पूरक बनी रहे तभी लोग उसे थोड़ा अच्छा कह पातें हैं ,
अच्छा एक बात है पुरूष मण्डल बड़ा संजीदा है , इसकी पवित्रता की पराकाष्ठा न मुझसे पूछों, मेरी कलम भी शर्मिन्दगी महसूस कर रही है।

कभी वक्त निकले झूठी व्यस्तता से तो सोंचना ,नहीं तो ये शब्द भी कागज में महज अक्षर से साबित तो होंगे ही।

यह पूरा लेख व्यंग्य के आधार पर लिखने का प्रयास है।
इसमें कही गई बात मेरी व्यक्तिगत अभिव्यक्ति, आपकी अपनी मनोधारणा सर्वोपरि है।
सादर धन्यवाद🙏🙏🙏🙏


© @मृदुलकुमार