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संक्रांति काल - पाषाण युग'अंतिम भाग'
पूरा वातावरण हँसी से गूँज उठा था, पर जादौंग की आँखो मे क्रोध के भाव देख ,सब चुप हो गए ,मचान पर चढे हुए तीनों बच्चे भी नीचे उतरकर जादौग के पास थोडा सहमते हुए आए , छोटे किरैंग के हाथ मे अब भी एक फल पकडा हुआ था । जादौंग ने आँखें  चढा कर उसे देखा तो , उसने झट से अपने हाथ वाला फल जादौंग की ओर  बढा दिया , जिसे लेकर जादौंग ने   उसी के मूँह  पर मसल दिया और हँस पडा .....

माहौल हल्का हो गया ,सभी एक दूसरे के हाथों को पकड़ कर एक घेरा बना कर नृत्य करने लगे ,ओमन और साना अब भी साथ ही थे जिन्हें दिखाने के लिए अम्बी ने जादौंग को कन्धे से मारकर टहोका। जादौंग ने देखा मगर कोई अनुमान ना लगा पाया।हँसते खेलते एक शाम और गुजर गई ।


अब आगे : ----

स्वागत की तैयारियां पूर्ण हुईं

पूरे पंद्रह दिन के कठिन मेहनत ,सूझबूझ और प्रयासों का परिणाम था कि, बचाव और आक्रमण दोनो की तैयारी बखूबी हो चुकी थी।गुफा के चारोँ और जमीन खोदकर सूखी घास और उसके ऊपर मशाल के काम लिए जाने वाले सूखे खाल के चरबी में डूबे टुकडों को जमा दिया।

गुफा को पूरी तरह घेरता हुआ ये खुदा हुआ हिस्सा इतना गहरा किया था कि अगर पानी भरा हो तो जादौंग जैसा बलिष्ठ नर भी उसमें डूब जाए...चौडाई भी लगभग इतनी ही रखी थी ।

इस गहरे गढ्ढे को गुफा का घेराव करते हुए पचास कदम की परिधि रखकर खोदा गया था....और निश्चित तौर पर यह कोई आसान काम तो नहीं था।यहाँ भी अम्बी की सूझबूझ ही काम आई। हाथों और उपलब्ध औजारों से यह कार्य महीने भर से पहले नहीं हो पाता। अम्बी ने एक स्लेज को तोडकर एक तरफ से उसपर हड्डियों के दाँते लगा दिए,जो उल्टा कर के चलाने पर मिट्टी बहुत तेजी से और ज्यादा जगह से निकाल पा रहा था।जब ऊँट से बाँध कर उसके ऊपर खडी होकर अम्बी ने गुफा का परिक्रमण किया तो कम समय मे काफी मिट्टी बाहर आ गई।

आगे की खुदाई फिर ओमान और साना ने मिलकर खेल खेल मे पूरी कर डाली थी।बाहर निकली मिट्टी को गुफाद्वार के आगे दो बडे टीलो के आकार मे जमा दिया ,जिससे गुफा के द्वार पर सीधे दृष्टि नहीं जा सकती थी ,और वहाँ छिपा व्यक्ति शत्रु की नजर मेंं आए बगैर हमला कर सकता है । पुनः इसी औजार का प्रयोग सूखी घास एकत्रित करने मे किया फिर उसे ऊपर झाडिय़ों से ढंक दिया था।


रणनीति

मचानों पर बच्चों व मादाओ को अलग रहना था, ताकि अधिक से अधिक दुश्मनों का निशाना लिया जा सके ,दिन के वक्त जादौंग, गौरांग ,ओमान और मीचेंग शिकार के लिए जाते थे।जादौंग ,अम्बी के साथ गुफा के पास ही के क्षेत्र मेंं शिकार करता था ,ताकि अगर नरपिशाच दिन मे भी हमला करें तो वह लडने को तत्पर रहे।

सबसे ऊँची मचान पर सबसे छोटा किरैंग था क्योंकि एक तो सबसे छोटा होने की वजह से सभी चाहते थे कि वो सबसे ज्यादा छिपी हुई जगह पर रहे और दूसरा उसकी नजर सबसे ज्यादा तेज थी तो दुश्मन को दूर से ही देखकर सबको सतर्क कर सकता था। साथ ही गुलेल नुमा अस्त्र का भी बड़ी अच्छी तरह प्रयोग करना सीख चुका था वो।

एक समस्या तो यह थी कि दिन के समय आक्रमणकारियों के हमले की दशा मेंं गुफा मेंं बड़े पुरुष सदस्य उपस्थित ना होने से छोटे सदस्यों व मादाओं पर आपत्ति आ सकती थी मगर इसका समाधान गौरांग ने निकाला की जिसे भी हमलावर पहले नजर आए वह छोटी चिडिय़ा की तरह आवाज निकाल कर दूसरों को संदेश पहुँचाएगा।लम्बी ध्वनि का अर्थ खतरा दिखना और छोटी ध्वनि का अर्थ सब कुशल है था।

दूसरी समस्या थी ऊंटो की सुरक्षा की ,क्योंकि उन्हें छिपाना संभव नहीं था ,कुत्तों की चिंता नहीं थी क्योंकि वे परिवार वालों के इशारे समझते थे,और दुश्मन पर हमला भी कर लेते , मगर ऊँट ,जो कि अब दो ऊँटनी और एक शिशु को मिलाकर पूरे छ: थे अभी तक अच्छे वाहक नहीं बने थे ।
बुझे मन से जादौंग और अम्बी उन्हें गहरे वन मे खारी झील के पास छोड आए ।उस...