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बड़ी हवेली (नाइट इन लंदन - 4)
तनवीर और अरुण अपने सामानों को अपने कैबिन में रखते ऊपर डेक पर आ गए जहाज से समुन्द्र का मनोरम दृश्य उनके दिलों को लुभा रहा था, साथ में विशाल बॉम्बे शहर जो दूर से भी उतना ही सुन्दर था जितना समुन्द्र से दिख रहा था, तभी उनके पास कैप्टन आता है और उनसे पूछता है "तनवीर आपके साथ जो ताबूत है, वो क्या काफ़ी पुराना है, इसकी क्या कोई खास डिमांड है विदेश में, जो डॉक्टर इसे रिसर्च के लिए मंगवाया है", कैप्टन उनकी तरफ आश्चर्य के भाव से देखता है।
तनवीर उसका जवाब देता है "जी हाँ, ये डॉक्टर ज़ाकिर को एक पुरातात्विक खोज में मिला था, लंदन जाने से पहले उन्होंने मेरे वालिद से इसे किसी तरह वहां भिजवाने के लिए बोला था, पर मेरे वालिद की तबीयत नासाज़ हो गई, इसलिए उन्होंने मुझे इसे डॉक्टर तक पहुंचाने के लिए कहा था, डॉक्टर इसपर अपनी रिसर्च अधूरी ही छोड़ गए थे ", तनवीर ने बड़ी कुशलता पूर्वक झूठ बोल दिया और कैप्टन ने उसकी बात मान ली।

फ़िर कैप्टन ने अपनी बात ज़ारी रखते हुए कहा" हमारे जहाज के कुछ नियम हैं, सुबह, दोपहर, रात के भोजन के लिए डाइनिंग हॉल में ही आना होगा, सफ़र लम्बा है अगर आप लोग चाहेंगे तो हमारे काम में हाँथ बंटा सकते हैं, अब ज़रा मेरे साथ मेरे कैबिन में आइए, वहाँ चलकर हम पैसों का लेन देन कर लेते हैं", कैप्टन उन्हें अपने साथ चलने का इशारा करते हुए कहता है और ऊपर अपने कैबिन में ले जाता है।

वहाँ पैसों का लेन देन कर के दोनों फ़िर से डेक पर आ जाते हैं, जहाँ समुंद्री यात्रा का दोबारा लुत्फ़ उठाने लगते हैं, खुशी के पल बिताते हुए वो दोनों जहाज में मौजूदा सभी कर्मचारियों से मुलाकात कर लेते हैं और जहाज पर उनके काम को लेकर थोड़ी जानकारियां भी इकट्ठा कर लेते हैं। जहाज पर पहला दिन यूँ ही बीत जाता है।

अगले दिन सुबह होते ही दोनों डेक पर सुबह की परेड के लिए इकट्ठा होते हैं, उसके बाद उन्हें नाश्ता मिलता है, मेस में नाश्ता ख़त्म करते ही ऊपर के डेक की सफ़ाई का काम उन्हें दिया जाता है, जहाज के फर्श से शीशे तक उन्हें साफ़ करने के लिए दिए गए, नवाब होते हुए भी तन्नू ने जहाज के कड़े नियमों का पालन किया क्यूँकि यह उस जहाज के कर्मियों की दिन चर्या का हिस्सा था, हर रोज़ उन्हें अपनी अपनी ड्यूटी बदलनी पड़ती थी। आज अगर सफ़ाई का काम है तो कल हो सकता है मेस में खाना बनाने में मदद करना पड़े, इसलिए दोनों ने ऊपर के डेक की सफ़ाई मन लगाकर की। देखते ही देखते दिन बीत गया शाम होते ही नहा धोकर, अपने कैबिन में दोनों आराम करने लगे।

"शुक्र है मैं अपने साथ बैग में छुपा कर दो स्कॉच की बोतल लेकर आया था, रोज़ाना काम के बाद दो दो पेग पी लिया जाएगा, ये देखो बोतल", अरुण कहते ही बैग से एक बोतल स्कॉच की निकालता है, तनवीर भी थकान मिटाने के लिए हामी भर देता है। अरुण कॉफी पीने वाले दो स्टील मग में एक एक लार्ज पेग बनाता है और दोनों उन्हें टकराने के बाद पीने लगते हैं। एक ही सांस में दोनों उस बड़े स्टील के मग खाली कर देते हैं।
"आह! बॉटम्स अप का मज़ा ही कुछ और है एक ही सिप में खाली, फिर बच्चा लोग बजाओ ताली, न चखने की ज़रूरत न किसी चीज़ की, वैसे मेरे बैग में भुने चने हैं, लो तुम भी खाओ", अरुण अपने बैग से एक छोटा टिफिन बॉक्स निकलता है जिसमें भूने चने भरे हुए थे, तनवीर एक मुट्ठी चना लेकर खाने लगता है।
अरुण दूसरा पेग बनाता है और उसमें थर्मस से पानी मिला कर तन्नू के उठाने का इंतजार करता है, तनवीर कुछ सोच रहा था।

" अमां यार इतना क्या सोच रहे हो, कोई प्रॉब्लम हो तो बताओ, अभी हल किए देते हैं, नहीं तो महफिल न बिगाड़ो लो अगला पेग जल्दी से सुड़क जाओ, कहीं कोई आ न जाए", अरुण तनवीर की ओर मग बढ़ाते हुए कहता है। तनवीर उसे हाथ से पकड़ता है और एक साँस में पी लेता है। फिर दोनों एक साथ स्टील मग नीचे अटैच फोल्डिंग टेबल पर रखते हैं। फिर चने खाने लगते हैं।

" भाई आज के लिए इतना ही बाकी के दारू चने सफ़र भर चलाने हैं, अपना कोटा आखिर अपना होता है, अभी तो जहाज का सफ़र शुरु ही हुआ है, हम लोगों को तो अब तक ये भी नहीं पता यहाँ कौन अपनी तरह महफिल जमाने का शौक रखता है, पता चलने तक अपना कोटा संभाल कर रखना है", अरुण कहते ही स्कॉच की बोतल और चने अपने बैग में रख लेता है। फिर दोनों बातें करने लगते हैं।

" अगर कमांडर जहाज पर लोगों को दिखने लगेगा तो क्या होगा ", तनवीर ने अरुण से पूछा।

" होगा क्या जहाज और जहाजियों की पतलून गीली पीली हो जाएगी ", अरुण ने हिलते हिलते जवाब दिया, स्कॉच का नशा उस पर असर करने लगा था। कुछ देर बातें करते करते उनका नशा थोड़ा हल्का होता है तो सीधा ऊपर के डेक पर निकल जाते हैं। थोड़ी खुली हवा में उन्हें अच्छा लगता है। दोनों कुछ देर खड़े होकर बातें करते हैं, फिर एक बेंच पर बैठ जाते हैं। तभी उस जहाज पर काम करने वाला एक आदमी उनके पास आकर कहता है "बात ही करते रहोगे या डाइनिंग हॉल में खाना खाने भी चलोगे, पता है न कैप्टन का ऑर्डर है सबको एक साथ ही खाना है, समय निकल गया तो खाना नहीं मिलेगा", तनवीर और अरुण उसके पीछे नीचे डाइनिंग हॉल तक जाते हैं। एक साथ खाना खाने के बाद दोनों थोड़ा टहल कर सोने चले जाते हैं।

एक रात और बीत जाती है। अगले दिन सुबह होते ही सबसे पहले परेड में शामिल होते हैं। फिर सुबह का नाश्ता कर काम पर लग जाते हैं। इसी तरह यात्रा के दो दिन और निकल जाते हैं।

एक शाम महफिल ख़त्म करने के बाद दोनों बैठकर बातें कर रहे थे कि अचानक वहाँ एक अज्ञात शख्स ने कैबिन के दरवाजे पर दस्तक दी। अरुण ने दरवाजा खोला। एक लम्बा चौड़ा आदमी सामने खड़ा था, अरुण ने उसे कमरे के अंदर प्रवेश करने दिया। वह अज्ञात शख्स तनवीर के पास आकर बोला "क्या आप ही तनवीर हैं, तनवीर ने सिर हिलाकर जवाब दिया, वह उसके बिस्तर पर बैठ गया और तनवीर से कहा" मैं अजीत हूँ, यहां के लगेज कंपार्ट्मेंट की देखरेख का ज़िम्मा मेरा ही है, पर कल रात जो हादसा हुआ मेरा उसपर यकीन कर पाना नामुमकिन है, मैंने अब तक इसका ज़िक्र किसी से नहीं किया, सबसे पहले मैं आप से मिलने चला आया, कल रात मैं देर तक उस कंपार्ट्मेंट की सफाई करने में लगा हुआ था, तभी मेरी नज़र आपके ताबूत पर पड़ी जिसके अन्दर से तेज़ लाल रोशनी चमक रही थी, उस ताबूत में कई जगह दरार है जिससे चमकती लाल रोशनी को साफ़ देखा जा सकता था, कुछ देर तक मैं उसे बड़े आश्चर्यजनक रूप से देखता रहा क्यूँकि मैं जो देख रहा था उसपर यकीन कर पाना नामुमकिन था, थोड़ी देर बाद वह रोशनी चमकना बंद हो गई और मैं ऊपर डेक पर आ गया", वह अपनी बात आगे जारी रखते हुए कहता है" मैं आज दिन भर इसके बारे में ही सोचता रहा फिर मैं आप ही के पास इस पहेली का हल पूछने आ गया", उसने तनवीर की ओर जिज्ञासा से देखते हुए कहा।

" लगता है आप को कोई वहम हुआ है है या आँखो का धोखा हुआ है, उस ताबूत के अंदर एक पुरातात्विक खोज में मिली कुछ वस्तुएं हैं और कुछ नहीं, इसी वजह से हम लोग लंदन जा रहे हैं",
तनवीर ने अजीत की आँखो में देखकर बड़ी कुशलता पूर्वक झूठ बोल कर उसकी बातों को टाल दिया। अजीत तनवीर के जवाब से संतुष्ट नहीं था, पर वह उससे जवाब पाकर वहां से चला गया। उसके जाते ही अरुण ने दरवाज़ा बंद किया और पलटकर चिंतित होकर तनवीर की ओर देखते हुए बोला" अमां यार इसे कहीं शक़ तो नहीं हो गया कि तुम झूठ बोल रहे हो क्यूँकि उसके चेहरे से लग नहीं रहा था कि वो तुम्हारे जवाब से संतुष्ट होकर गया है, लगता है रात में कमांडर जब जागा होगा उस वक़्त सफ़ाई कर रहा होगा, कमांडर को जब इस बात का एहसास हुआ होगा कि कोई आस पास खड़ा है तो उसने दुबारा आँखे बंद कर ली होंगी "।

" मुझे भी ऐसा ही लगता है, अब सवाल यह है कि इन महाशय ने अगर अपने से कुछ जाँच पड़ताल करने के चक्कर में संदूक को खोल दिया तो फिर क्या होगा, इस जहाज पर अब हमें कोई खतरा है तो वह इन्ही महाशय से है इसलिए इनके ऊपर दिन रात नज़र रखनी पड़ेगी ", तनवीर ने चिन्तित मुद्रा में अपनी बात को अरुण के सामने प्रकट किया।

दोनों के मन में सच बाहर आने का भय था कि अगर कमांडर का असली रूप सामने आ गया तो क्या होगा, साथ ही साथ अब उन्हें अजीत नाम की चिन्ता भी सताए जा रही थी।
-Ivan Maximus

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