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आत्मविश्वास
आत्मविश्वास:-
आत्मविश्वास अर्थात आत्मा में विश्वास। आत्मविश्वास अर्थात 'मैं आत्मा हूं', इस बात में विश्वास। जब यह विश्वास हो गया कि मैं (डॉ. श्वेता सिंह)आत्मा हूं, तो यह स्मृति भी स्वत: रहेगी कि मेरा पिता परमात्मा (परम-आत्मा) है। जब तक यह स्मृति रहती है, तब तक सब ठीक रहता है। जब इस सत्य को भूल जाते हैं, तो फिर निराश, उदास, हताश हो जाते हैं। डिप्रेशन की स्थिति आ जाती है। बच्चे जब कभी उदास निराश हो जाते हैं, तो मां-बाप उनकी हिम्मत बढ़ाते हुए कहते हैं, देखो यह सब कुछ जो मेरा है सब तुम्हारा है। तुम ही तो मेरी संपत्ति के वारिस हो। इस तरह उनकी उमंग उत्साह को बढ़ाते हुए उन्हें खुशी में लाते हैं। ऐसे ही परमात्मा भी बच्चों को बताते हैं कि तुम कोई साधारण आत्मा नहीं, बल्कि कोटों में कोई मेरे विशेष बच्चे हो। मेरा सुख, शांति और समृद्धि तुम्हारे लिए ही है। जब परमात्मा स्मृति दिलाते हैं कि तुम्हारे पास क्या-क्या खज़ाने हैं, तो बच्चों की सारी उदासी दूर हो जाती है। ईश्वरीय संतान, परमात्म वर्से के अधिकारी और डिप्रेशन' - यह कैसे हो सकता है ?
डिप्रेशन में आने का एक अन्य कारण सूक्ष्म में पैदा हुआ ईर्ष्या का भाव भी है। किसी को देखा, मेरे साथ का था, आज कितना आगे बढ़ गया है, मैं तो वहीं का वहीं रह गया, यह भाव व्यक्ति में निराशा ले आता है।अपने को देखो, दूसरे को नहीं। यह वैरायटी ड्रामा है, किसी का पार्ट दूसरे से मिल नहीं सकता। हमें मुकाबला दूसरों से नहीं बल्कि स्वयं से करना है। कल मैं आत्मा कैसी थी, आज कितनी श्रेष्ठ बन गई हूं, अपने को देखना है। दूसरों के साथ रेस भले करो लेकिन किसी से रीस मत करो। रीस अर्थात ईर्ष्या की आग में जलने से डिप्रेशन आता है।(डॉ. श्वेता सिंह)

© Dr.Shweta Singh