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नौकरी
जैसे जैसे बड़े हुए समझ आया हाल
ए जिंदगी मध्यम वर्गीय परिवार की
सबसे बड़ी बड़ी जद्दोजेहद कैसे भी हो
घर में बच्चों की हो जाए एक नौकरी
मां बाप अपनी जगह सही थे बड़ी
मेहनत से पाला पोसा है अपना पेट सपने
काट कर तुमको पढ़ाया लिखाया है
जितना हो सका उनसे सब लगा कर तुमको
इस काबिल बनाया है की तुम खुद से उठा सको
खुद की जिम्मेदारी क्योंकि आगे अब सब कुछ तुमको ही चलाना है बूढ़े हो रहे कंधो को अब तुमको को सहारा बन थोड़ा आराम दिलाना है
जवान होती जिंदगानी में अब तुमको हर पल
ये चिंता सताएगी की अगर नही हुई नौकरी जल्दी
तो मां बाप की आशा अधूरी रह जायेगी ,
घर की चिंता रोज सताएगी क्योंकि महंगाई
और खर्चा और पैसे की कीमत हर पल तुझे अब समझ आएगी । खुद को भूल झोंक देते है
जिंदगी पाने नौकरी कौन सोचता है मिलेगा क्या
सुकून नौकरी पाने से , दिन रात सिर्फ यही चिंता
सताएगी क्या इतनी मेहनत के बाद नौकरी मिल जायेगी । खुद के अरमान जाने कबके भूल गए
नौकरी पाने की चिंता में बहुत तो जीना ही भूल गए
लाखों की भीड़ में कुछ हजार ही नौकरी पाएंगे
जिनको मिल गई वो सब भी क्या खुशियां मनाएंगे
आधे से ज्यादा तो खुद का घर छोड़ कही दूर चले जायेंगे हर पल उनको सताएगी याद घर की, हर
छोटी बात की रुलाएगी रह रह की आएगी मां बाप की याद बस सुकून होगा इतना की मां बाप को सहारा दे पाएंगे कुछ और ना सही वो फक्र से सबको कह पाएंगे की हमारा बच्चा अपने पैरो पर खड़ा हो गया है और हमें उसके भविष्य की चिंता से
मुक्त कर दिया है ।
बहुत कम होते हैं जो अपनी मर्जी की नौकरी पाते है जाने वो भी क्या सुकून से जी पाते है पर असली
परीक्षा तो उनकी है जो अपना सब दांव पर लगा as
लिए नौकरी की बैठे है बस इसी उम्मीद में खुद को वो पिघला रहे हैं की एक नौकरी मिल जाए
बड़ी ही अजीब होती है ये नौकरी जिसे मिल गई
उसको भी अलग अलग तरीके से सताती है जिसे नही मिले उसको रोज मुंह चिढ़ाती है




© sac_lostsoul