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मँदिर
मँदिर
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साल के दो छोटे जँगल
घर के आगे घर के पीछे महकतें हैं
इक अलग ही दुनियाँ की चाहत से
मैने इस घर को चुन लिया था
घर के सामने बिना शिखर का इक छोटा सा मंदिर है
गगन छुते पेड़ो के पत्तो ने जिसका शिखर बनाया है
राहगिरों ने अपने विशवास का दिया यहाँ जलाया है
कुछ बातों के बाद ही, समझ न आये हकीकतो के बाद ही जैसे कोइ पौधा उभर कर अपने फुलो से भरता है
यह मँदिर भी धीरे धीरे अपने रँग को भर रहा है
आस्था से जुड़ता मँदिर ...।
दूसरी तरफ आस्था का मजाक उड़ाता दुसरा मँदिर
मँदिरों के बारे में क्या कहें जिसने भी बनाया
और दुनियाँ के सामने खुद क़ो सेवक दिखलाया है लाखो में खेला खाया है मैने देखा एक अजब ही वाकया एक महारा,
शर्मा जी लिखते हैं अपने आप को
खुदको, पैर में लकड़ी वाली खड़ाऊ, माथे में तिलक,
सफेद कुछ मटमैली हाफ कमीज और एड़ी के पास
तक की हाफ तहमद ,गले में मोटी मोटी तुलसी की
माला सच्चे पँडीत के तरिको के पक्के रूप में सजाए रखते हैं खिचड़ीदार सफेद बाल और छोटी दाड़ी
सबसे बड़ी बात खुद ने जोड़ तोड़ कर बनवाया था पक्का एक मँदिर उसके बाजू में रहने वाले जाति से ब्राम्हण ने बतलाया
श्रीमान यह एक म्हारा है किन्तु खुद को ब्राम्हण बताताहै ,लोगों को ठगता है
और लूट के खाता है इसकी औरत इसाई धर्म को मानती है फोकट में घर चलाती है
मैने कहा एक असली के सामने वह नकली ब्राम्हण कैसे टिक गया बेचारे कुछ बोल न सके.।
थोड़ी देर बाद मैने कहा नोट कर लो पान्डे जी आप और यह दोनो ही झोपड़ो में रहते हो किंतु जल्द ही इसका पक्का मकान दुकान गाड़ी घोड़ा सब हो जाएगा और आप असल बामन होकर भी पिछड़ जाओगे ।क्युँकि आप ने मँदिर का सेवा लाभ नही लिया है
कुछ दिनो पहले मैने देखा सच ही डबल मंजिल इमारत घोड़ा गाड़ी सबकुछ और पाँडे बेचारे अपनी झोपड़ी में ही हताश से बैठे हैं मुझे देखते ही कहा सच कहते थे आप इशारा करके डबल मँजिल बन गयी...।मँदिर ने ईन्हें सबकुछ दे दिया ..।
मँदिर में यकीनन चमत्कारिक शक्ति होती है...।यह न होता तो बेचारे उस महारे का कल्याण तो यकीनन नही होता
अब सुनता हूँ मँदिर के बहाने नेताओं से भी साँठ गाँठ होने लगी है कोइ बड़ी बात नही की नेताओं की नकेल ये नकली शर्मा जी
अपने हाथों लेकर चल रहे होँगे.।
यह मात्र एक कहानी है इसका असलियत से कोई लेना
देना नही है.।


© सुशील पवार