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मँदिर
मँदिर
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साल के दो छोटे जँगल
घर के आगे घर के पीछे महकतें हैं
इक अलग ही दुनियाँ की चाहत से
मैने इस घर को चुन लिया था
घर के सामने बिना शिखर का इक छोटा सा मंदिर है
गगन छुते पेड़ो के पत्तो ने जिसका शिखर बनाया है
राहगिरों ने अपने विशवास का दिया यहाँ जलाया है
कुछ बातों के बाद ही, समझ न आये हकीकतो के बाद ही जैसे कोइ पौधा उभर कर अपने फुलो से भरता है
यह मँदिर भी धीरे धीरे अपने रँग को भर रहा है
आस्था से जुड़ता मँदिर ...।
दूसरी तरफ आस्था का मजाक उड़ाता दुसरा मँदिर
मँदिरों के बारे में क्या...