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बिना फोन वाला शहर
सुमन आज ऑफिस से जल्दी घर आ गई थी क्योंकि उसके ऑफिस मे आज हाफ-डे था सुमन का काम कॉलिंग का था तो वह लोगो से बात करते-करते काफी परेशान हो जाती थी।

आज घर जा कर वह अपने बच्चो के साथ समय बिताना चाहती थी उसके दो बच्चे थे एक लड़का जो सात साल का था और एक लड़की जो चार साल की थी।

वह जैसे ही घर पहुंचती है तभी उसके पति का फोन आ जाता है उससे बात करके वह हटी ही थी की तभी उसकी माँ का फोन आ जाता है।

सुमन भी फोन पर बात करते-करते काफी परेशान हो चुकी थी क्योंकि आज वो अपने बच्चो के साथ समय बिताना चाहती थी।

सुमन उनके कमरे मे जाती है तो वह देखती है की उसके दोनो बच्चे अपने दादाजी का फोन चला रहे थे वो फोन चलाने मे इतने खोये हुए थे के उन्हे ये तक नही पता चला की उनकी मम्मी कब से उनके पास बैठी हुई है।

वो उनका ध्यान अपनी तरफ लाने की कोशिश भी करती है पर वह थोड़ी देर उसके पास आते है फिर जिद्द करके दुबारा फोन चलाने बैठ जाते है।

सुमन उनसे बात भी करने की कोशिश करती है पर उनको तो जैसे उसकी किसी बात का असर ही ना हो रहा हो और वह थोड़ी सी उदास हो जाती है ।

उनके कमरे से निकल कर वह  किचन की तरफ चली जाती है  फटाफट से अपना काम निपटा कर वो अपने रूम मे जा कर लेट जाती है।

उसके पति को आज आने मे काफी देर हो गई थी तो वह अपना फोन उठाती है और अपने पति से पूछने लगती है की वह कहाँ है और कब तक आएंगे ।

फोन पे बात करने के बाद वह थोड़ी देर फोन चलाती है की तभी उसकी फ्रेंड का व्हाटसप् पर म्सज् आ जाता है वह अपनी फ्रेंड से बात कर ही रही होती है की उसे उन दिनो की याद आ जाती है।

जब ये शहर बिना फोन वाले हुआ करते थे कैसे हमको किसी अपने से बात करनी होती थी उनको घंटो घंटो डाक्खाने मे खड़े होकर पत्र भेजा करते थे उनका हाल चाल लेने के लिए और अपने हाल चाल उन्हे देने के लिए।

उसके बाद इंतज़ार करते थे वहाँ से पत्र आने का और अपने भेजे हुए पत्र का जवाब कब मिलेगा।

उसके बाद तो एक-एक कर सुमन को वह सब बाते याद आने लगी कैसे जब उसके पापा ऑफिस से घर आते थे तो वह खेलते-खेलते उनके पास भाग जाती थी।

यह जताने के लिए जैसे वह कब से उनके आने का इंतजार कर रही हो की कब उसके पापा आएंगे और वह उनके साथ चीज लेने जाएगी।

गलियों मे दोस्तो का झुंड बना कर सभी काफी मजे से खेला करते थे घर से तो जैसे कोई लेना देना ही नही होता था ।

उस समय का शहर एक ऐसा शहर होता था जहाँ बच्चों को जबरदस्ती घर मे घुसाया जाता था मार-मार कर की बहुत देर हो गई अब अंदर चलो।

उसके बाद भी अगर समय मिलता था तो घर मे ही पड़े किसी सामान का खिलौना बना कर उसी से खेलना शुरू कर देते थे।

वही दूसरी और जब हमारा यह शहर बिना फोन के हुआ करता था तो हमारी सुबह चिड़ियो की चहाचाहट से हुआ करती थी
उनकी मधुर आवाज सुन कर मन को बहुत सुकून मिलता था।

बिस्तर से उठकर जब हम घर के आंगन मे जाते थे तो वहा इतनी सारी चिड़ियाँ इधर से उधर फुदकती रहती थी की मन करता था उनके साथ हम भी मग्न हो कर यहाँ से वहाँ घूमे।

बिना फोन वाले शहर मे लोग अपनो के साथ खुब गप्पे लड़ाया करते थे घर मे जब कोई आता था तो सभी बच्चे आँगन मे एक साथ खूब शोर मचाया करते थे

उस समय गली मे बस एक ही टीवी होता था उसी एक टीवी से पूरी गली का काम चल जाता था वो भी बिना ये जताये की ये हमारा टीवी है।

फोन वाले इस शहर मे जब से 4g 5g स्पीड वाले टावर और वाई फाई की तार जगह जगह लग गई है जब से चिड़ियों ने जाने कहाँ पलायन कर लिया।

अब उनका दिखना तो बहुत दूर की बात है उनकी आवाज तक सुनाई नही देती है और घर का आंगन तो वह ना जाने कब का छोड़ चुकी है।

रिश्तेदारो को याद करके पत्र भेजने की जरूरत ही नही पड़ती उनसे हम चाहे तो रोज ही बात हो जाती है और इतनी हो जाती है की एक दिन बात ना भी हो तो कोई फर्क नही पड़ता यही सोच कर की अभी कल ही तो बात की थी।

आज के इस शहर मे बच्चो को जबरदस्ती बाहर भेजा जाता है ये बोल कर की जाओ थोड़ी देर अब बाहर जाकर भी खेल लो बहुत देर हो गई फोन चलाते-चलाते।

इस शहर मे टीवी तो हर घर मे लेकिन फोन के आगे वह सब अब बंद पड़े है महीने मे एक आधा बार भी चल जाए तो बहुत बड़ी बात है।

बेशक से हमारा देश तरक्की कर रहा है और ये हम सब के लिए गर्व की बात है लेकिन इस टेक्नोलिजी वाले शहर मे हम
अपनो को,घर के आँगन मे खेलते  बच्चे,लोगो मे वो अपनापन काफी पीछे छोड़ आए है।

सुमन अभी  अपने ख्यालो की दुनिया मे ही थी की उसके बच्चे उसके पास आ जाते है मम्मा-मम्मा करते हुए और वह अपने ख्यालों से बाहर आ जाती है।

लेकिन यह कहानी सिर्फ सुमन की नही है बल्कि शहर मे रहने वाले उन सभी लोगो की भी है जिन्होंने बिना फोन के जिंदगी के मजे लिए है जो बिना फोन के शहर मे रहे है।

© Himanshu Singh