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यूँही न अंत हो
"अंत भला तो सब भला " बचपन से सुनते आरहे इस बात को बड़ा हुआ हूँ, मन मे यह सवाल हमेशा बना रहता है, क्या अंत ही अंत होता है? या फिर अंत एक नए विचार, आपदा, प्रेम या विकास को जन्म देता है?
देश कि रक्षा करते हुए उस सैनिक से पूछिए अगर उसका अंत सरहद पे होता है तो क्या उसका और उसके परिवार का इसमें भला है? उसका बलिदान देश के हित मे तो बहुत बड़ा और अतुलनीय है, लेकिन पीछे छूट गई उसकी अधूरी ज़िम्मेदारिओं मे किसका भला है|
इस बात को और गहरायी से जानने के लिए मैंने जल यात्रा कि| रास्ते मे मुलाक़ात एक मछली से हुई, बेहद आकर्षक और उस नदी कि शोभा बढ़ाती हुई उस जल कि रानी के पास पहुंच कर थोड़ी देर तक और मन मुग्ध होकर उसे देखता रहा फिर अचानक से पानी मे कुछ तरंगे उठी और वो गायब| देखा तो एक मछुवारा उसे बहुत प्यार से उसे एक छोटे से तस्ले मे अपनी कश्ती मे ले जारहा था, रात को खाने कि प्लेट मे ज़रूर वह मछली किसी का स्वाद बढ़ाएगी, फिर एक सवाल उठा क्या इसका अब जो अंत होगा वो क्या उसके भले मे होगा?
रेशम का कीड़ा जन्म देते समय अपना बलिदान करता है, तो इसमें भला किसका उस नए जन्मे कीड़े का या फिर जिसने उसे जन्म दिआ उसका?
किसीका अंत किसीका भला बन सकता है, लेकिन किसीका भला किसीका अंत बन जाए तो? मेरे सवाल और विचार बहुत से लोगो को परेशान कर सकते हैं, अंत मे जवाब मिल जाए तो सवाल सुलझ जायगा|
आपके सामने यह सवाल छोड़े जा रहा हुँ -
" सावन के महीने मे पुराने पत्तों का झड़ जाना अंत है या फिर संकेत है कि नए पत्तों का आना अब शुरू "?
© Fareed Ahmad khan