संक्रांति काल - पाषाण युग ४
आसमान से रिमझिम बौछारें पड़ने लगी जो ये संदेश दे रही थी की देवता प्रसन्न हैं । उल्लसित जोड़ा गुफा की और एकांतवास को जा रहा था जिन्हे दो निगाहें बडे चाव से निहार रही थीं । जोडे की उन्नति की प्रार्थना करने धारा देवता की पहाड़ी पर चढ रही थी ,स्वयं को अंबी के जीवन की प्रसन्नताओं के बदले देवता को समर्पित करने के लिए......!
पिछले अंक से आगे --
नए मानवीय संवेगों से परिचय
जादौंग और अम्बी दोनों का एक दूसरे के प्रति आकर्षण अन्य नर व मादा की तरह मात्र देहिक सुख तक सीमित नहीं था।देह का मिलन तो इस प्रेम का प्रारम्भ ही था।दोनों युगल एक साथ ही शिकार पर जाने लगे थे।अम्बी को जादौंग देव पुरुष लगने लगा था,उसने कभी अपने भाईयों में और अपने पिता के स्वभाव में इस तरह के कोमल भावों का दर्शन नहीं किया था।
उसने तो अपनी जननी धारा को हमेशा पुरुषों द्वारा नोंचे जाते ही देखा था.....वो तो यही जानती थी कि पुरुष एक ऐसा पशु है,जो अपनी प्रसन्नता और अपने स्वार्थ के लिए
ही सबकुछ करता है।पुरुष एक स्वकेन्द्रित प्राणी है, जिसका हर कार्य व्यवहार स्वयं के भोग मात्र निमित्त है।
कई बार अम्बी अपने अन्तर्मन के साथ संवाद करती- "जादौंग .... नहीं वो बिलकुल भी ऐसा नहीं है,वो तो हर काम में हाथ बँटाता है।उसने हमेशा मेरी इच्छा अनिच्छा को समझा और माना है...जादौंग अन्य पुरुषों से अलग है, बिल्कुल अलग।जादौंग का आगमन उसके जीवन में कितने सुखद परिवर्तन लाया है।वो मात्र दो प्राणी हैं गुफा में,फिर भी,लगता है मानो सारा संसार बसा लिया हो।क्या, कभी कोई पुरुष बडा शिकार लाने के बावजूद, अपनी मादा की इच्छा का सम्मान कर सकता है?कितनी ही बार ऐसा हुआ है कि,वो खुद थकी होने के कारण जादौंग को संसर्ग सुख ना दे पाई पर,वो देव पुरुष उग्र नहीं हुआ और मुस्कुरा कर माँस पकाने और गुफा के सार संभाल में मदद कराने लग गया।अन्य पुरुषों की भांति उसकी भूख़ देह तक सीमित नहीं है...वो प्रेम समझता है...निश्चित ही वो देवपुरुष है,जिसे देवता ने भेजा है ....मेरे लिये...इस गुफा के लिए,और....हमारा परिवार बढ़ाने के लिए..." , अंतिम विचार पर अम्बी खुद ही लजा जाती,उसका चेहरा लाल हो जाता।
कभी कभी तो,अम्बी को जादौंग में अपनी जननी धारा की छवि भी दिखाई देती थी,जब वो अम्बी के सिर को अपनी गोद में रख सहलाया करता था।
कई बार जादौंग में अम्बी एक शिशु की छवि भी देखती जब वो जिज्ञासु भाव से अम्बी की देह पर अपनी उंगली को फिराता,मानो उसे पूरी तरह पढ़ लेना चाहता हो।एक मीठी गुदगुदी का अहसास करके अम्बी खिलखिलाकर हँस पड़ती,और जादोंग एक बच्चे की तरह झेंपकर रूठ जाता कितना निश्छल,कितना मासूम,अम्बी चाहती कि, ऐसे ही उसे देखती रहे।
जादोंग और अम्बी के रिश्ते की प्रगाढ़ता का कारण शायद यह भी था कि वे दोनों ही विचारशील थे।प्रकृति को निहारना,उसके रहस्यों पर देर तक विचारना दोनों को अत्यंत प्रिय था।
परिवार में एक नया सदस्य
आज भी दोनों रात्रि में संसर्ग के पश्चात संतुष्ट भाव से आसमान में चमकते तारों को आपस में बाँट रहे थे,तभी कोई तारा टूटता हुआ दिखता है,अम्बी डर से जादौंग के विशाल वक्ष में अपना मुँह छिपा लेती।इस क्रीड़ा में जादौंग को बहुत आनन्द की अनुभूति होती,वो अपना हाथ बढ़ाकर मुट्ठी में,उस तारे को पकड़ने का उपक्रम करता और...
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नए मानवीय संवेगों से परिचय
जादौंग और अम्बी दोनों का एक दूसरे के प्रति आकर्षण अन्य नर व मादा की तरह मात्र देहिक सुख तक सीमित नहीं था।देह का मिलन तो इस प्रेम का प्रारम्भ ही था।दोनों युगल एक साथ ही शिकार पर जाने लगे थे।अम्बी को जादौंग देव पुरुष लगने लगा था,उसने कभी अपने भाईयों में और अपने पिता के स्वभाव में इस तरह के कोमल भावों का दर्शन नहीं किया था।
उसने तो अपनी जननी धारा को हमेशा पुरुषों द्वारा नोंचे जाते ही देखा था.....वो तो यही जानती थी कि पुरुष एक ऐसा पशु है,जो अपनी प्रसन्नता और अपने स्वार्थ के लिए
ही सबकुछ करता है।पुरुष एक स्वकेन्द्रित प्राणी है, जिसका हर कार्य व्यवहार स्वयं के भोग मात्र निमित्त है।
कई बार अम्बी अपने अन्तर्मन के साथ संवाद करती- "जादौंग .... नहीं वो बिलकुल भी ऐसा नहीं है,वो तो हर काम में हाथ बँटाता है।उसने हमेशा मेरी इच्छा अनिच्छा को समझा और माना है...जादौंग अन्य पुरुषों से अलग है, बिल्कुल अलग।जादौंग का आगमन उसके जीवन में कितने सुखद परिवर्तन लाया है।वो मात्र दो प्राणी हैं गुफा में,फिर भी,लगता है मानो सारा संसार बसा लिया हो।क्या, कभी कोई पुरुष बडा शिकार लाने के बावजूद, अपनी मादा की इच्छा का सम्मान कर सकता है?कितनी ही बार ऐसा हुआ है कि,वो खुद थकी होने के कारण जादौंग को संसर्ग सुख ना दे पाई पर,वो देव पुरुष उग्र नहीं हुआ और मुस्कुरा कर माँस पकाने और गुफा के सार संभाल में मदद कराने लग गया।अन्य पुरुषों की भांति उसकी भूख़ देह तक सीमित नहीं है...वो प्रेम समझता है...निश्चित ही वो देवपुरुष है,जिसे देवता ने भेजा है ....मेरे लिये...इस गुफा के लिए,और....हमारा परिवार बढ़ाने के लिए..." , अंतिम विचार पर अम्बी खुद ही लजा जाती,उसका चेहरा लाल हो जाता।
कभी कभी तो,अम्बी को जादौंग में अपनी जननी धारा की छवि भी दिखाई देती थी,जब वो अम्बी के सिर को अपनी गोद में रख सहलाया करता था।
कई बार जादौंग में अम्बी एक शिशु की छवि भी देखती जब वो जिज्ञासु भाव से अम्बी की देह पर अपनी उंगली को फिराता,मानो उसे पूरी तरह पढ़ लेना चाहता हो।एक मीठी गुदगुदी का अहसास करके अम्बी खिलखिलाकर हँस पड़ती,और जादोंग एक बच्चे की तरह झेंपकर रूठ जाता कितना निश्छल,कितना मासूम,अम्बी चाहती कि, ऐसे ही उसे देखती रहे।
जादोंग और अम्बी के रिश्ते की प्रगाढ़ता का कारण शायद यह भी था कि वे दोनों ही विचारशील थे।प्रकृति को निहारना,उसके रहस्यों पर देर तक विचारना दोनों को अत्यंत प्रिय था।
परिवार में एक नया सदस्य
आज भी दोनों रात्रि में संसर्ग के पश्चात संतुष्ट भाव से आसमान में चमकते तारों को आपस में बाँट रहे थे,तभी कोई तारा टूटता हुआ दिखता है,अम्बी डर से जादौंग के विशाल वक्ष में अपना मुँह छिपा लेती।इस क्रीड़ा में जादौंग को बहुत आनन्द की अनुभूति होती,वो अपना हाथ बढ़ाकर मुट्ठी में,उस तारे को पकड़ने का उपक्रम करता और...