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जो ना लिखोगे पत्र तुम मुझे मैं रूठ जाऊंगी
जो ना लिखोगे पत्र तुम मुझे मैं रूठ जाऊंगी
अगर ना मिलोगे तुम मुझ से मैं रूठ जाऊंगी,

बोलो कितना तड़पाओगे
क्या जान ही निकाल दोगे
गंगा जमुना आंखों से बहाऊंगी
जो ना लिखोगे पत्र तुम मुझे मैं रूठ जाऊंगी

सावन भी न बरसेगा
मोर भी अब न नाचेगा 
गीत ना कोई भी गाऊंगी
जो ना लिखोगे तुम पत्र मुझे मैं रूठ जाऊंगी

तुम तो हो हरजाई
क्यों मांगते हो हर वक्त माफी
अब ज़रा हक न जताऊंगी
जो ना लिखोगे तुम पत्र मुझे मैं रूठ जाऊंगी

गीत न गाएगी कोई रागिनी
महकेगी नही रजनीगंधा की डाली
मैं भी मिलन के गीत नहीं गाऊंगी
जो ना लिखोगे तुम पत्र मुझे मैं रूठ जाऊंगी

भेजना पत्र में गुलाब की लाली
छिटक देना उसमें प्रीत की चाँदनी
मैं भी चाँद सी मुस्कुराऊंगी
जो लिखोगे पत्र तो मैं तुम्हें अपना मानूंगा
प्रियवर तुम्हारे हिय में अपरिमित अनुराग सी बस जाऊंगी।

© नेहा माथुर 'नीर'