इस दुनिया को तमाशा चाहिये।
दुनिया सोचती है, जितना बड़ा नुकसान हो हमें उतना रोना चाहिये। नुकसान ज़ाति ज़िन्दगी का हो या पैसे धेले का । जितना बड़ा नुकसान उतना बड़ा तमाशा ।
और अगर कोई रोये ना तो जरूर कोई गड़बड़ है।
इंसान को जब धक्का लगता है उसका बाद लोगो को चाहिए वो रोना पीटना मचा के दुनिया की सहानुभूति ले औऱ अपना दुखड़ा गाये। और अगर कोई नही रोता अपने गम दिल मे दबाये, हसी लिए के साथ आगे बढ़ जाता है तो दुनिया को मंजूर नहीं क्योंकि दुनिया को तो बस तमाशा चाहिए ।
पर रोके सहानुभूति लेना तो कमज़ोरी की निशानी है ना फिर क्यों जब कोई अपना दुख समेट के आगे बढ़ने के लिए बोरिया बिस्तर बांध लेता है तो उसके लिए बार बार माज़ी के गड्ढे क्यों खोदे जाते है।
ये दुनिया इतने मतलबी क्यों है क्यों इसे बस अपना मनोरंजन चाहिए चाहे किसी की दुनिया मे तूफान आने का बाद शांति लाने की पूरी कोशिश की जा रही हो।
© maniemo
और अगर कोई रोये ना तो जरूर कोई गड़बड़ है।
इंसान को जब धक्का लगता है उसका बाद लोगो को चाहिए वो रोना पीटना मचा के दुनिया की सहानुभूति ले औऱ अपना दुखड़ा गाये। और अगर कोई नही रोता अपने गम दिल मे दबाये, हसी लिए के साथ आगे बढ़ जाता है तो दुनिया को मंजूर नहीं क्योंकि दुनिया को तो बस तमाशा चाहिए ।
पर रोके सहानुभूति लेना तो कमज़ोरी की निशानी है ना फिर क्यों जब कोई अपना दुख समेट के आगे बढ़ने के लिए बोरिया बिस्तर बांध लेता है तो उसके लिए बार बार माज़ी के गड्ढे क्यों खोदे जाते है।
ये दुनिया इतने मतलबी क्यों है क्यों इसे बस अपना मनोरंजन चाहिए चाहे किसी की दुनिया मे तूफान आने का बाद शांति लाने की पूरी कोशिश की जा रही हो।
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