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शर्त
#शर्त

चंदन को शर्त लगाना और फिर उसे जीतना बहुत पसंद था। हर बात पर शर्त लगाना उसकी आदत में शुमार हो गया था। इसलिए चंदन को लोग शर्तिया चंदन कह कर बुलाते थे। आज फिर उस ने शर्त लगाई थी आनंद से कि वह बड़ी हवेली के बगीचे से दस आम तोड़ के लायेगा। फिर यहां से शुरू हुई होड़ दोनों के बीच। आंनद ना नहीं कह पाया क्योंकि वह चंदन का व्यवहार जानता था कि अगर वह यह शर्त नहीं पुरा किया तो शर्त के मुताबिक उसे चंदन की गुलामी करनी पड़ेंगी जो वह नहीं चाहता था। आंनद ने शर्त स्वीकार कर लिया था लेकिन उसे डर था। उसे डर चंदन से नहीं किंतु हवेली के सिपाही से थी। वह हवेली एक रिटायर्ड फौजी का था। वह बहुत डरावना था। बच्चे लोग उसे पसंद नहीं करते थे और वह खुद भी बच्चों को समझता नहीं था। कोई क्रिकेट का गेंद अगर हवेली पर चली जाए तो वह सारी गेंद अपने साथ रख लेता था और बदले में खूब मारता था। ऐसी अफवाह फैली हुई थी। अब यह बात कितना सच है ये कोई नहीं जानता था। लेकिन वह फौजी का नाम पुरी गली-मोहल्लों में मशहूर था। वह नामी गिरामी था । आंनद और चंदन की शर्त की बात पुरी स्कूल में फैल गई थी। जैसे की आंनद कक्षा पांच में था, वैसे ही चंदन भी उसी कक्षा में था। दोनों का तौर तरीका एकदम अलग, व्यवहार अलग, रहन-सहन अलग। आंनद पढ़ने में अच्छा था। कक्षा में उसको अध्यापक मानते थे। लेकिन वहीं चंदन कक्षा में रहता तक ना था। अध्यापकों से डांट खाना, परेशान करना और कक्षा में अफवाह फैलाना यही सब उसकी आदत थी। चंदन के शर्त वाले किस्सों में कोई ना कोई बोलना चाहता था ना किसी को मतलब था। क्योंकि आधे से ज्यादा लोग डर के कारण चुप थे। बाकी लोग जानते थे कि अगर इस सिलसिले में कुछ कहां सुनीं हुई तो चंदन से हमेंशा के लिए दुश्मनी लेना हुआ। रोज़ आए दिन कौन मुसीबत में पड़ना चाहेगा। यहीं वजह थी सब जानते हुए भी चुप थे। शर्त के मुताबिक आंनद और चंदन सामने आए। आंनद ने चिल्लाकर कहा कि देखो चंदन मैं सामने हूं तुम्हारें और हां आज जो भी होगा, इसके बाद तुम मेरे सामने नहीं खड़े रहोगे और कोई काम में विपत्ति नहीं खड़ा करोगे। चंदन अपने दोस्तों के सामने बोला, ठीक है आंनद! मैं अपने सारे दोस्तों के सामने यह स्वीकार करता हूं। आंनद कांपती हुई अवस्था में गया और हवेली के दीवार को लांघकर आम के पेड़ पर चढ़ा और आम धीरे-धीरे करके तोड़ने लगा। वह बहुत बच करके कार्य कर रहा था किंतु कुछ आम के तोड़ने के दौरान ही एक आवाज से सिपाही के नौकर को वह दिख गया और उसे पकड़ कर, सिपाही के पास पहुंचा दिया। सिपाही ने उसे देखा और पकड़ लिया यह शोर बाहर पहुंचा। तब डर के मारे चंदन हवेली से थोड़ी दूर चला गया ताकि आंनद उसका नाम ना ले ले और वह ना फंस जाए। चंदन के साथ उसके दोस्त भी भागने लगे। सिपाही ने उससे आने और चोरी की वजह पुछा और फिर वह हंसने लगा। बोला तुम तो बहुत बहादुर हो यहां कोई बच्चे नहीं आते सब अफवाहो के वज़ह से डरते हैं मुझसे। तो तुमने चोरी शर्त के वज़ह से यहां करी। आंनद कांप रहा था उसकी अवस्था सिपाही ने देखा और बोला देखो बेटा मेरे विषय में यह सब कहीं गई बातें हैं, लेकिन यह सच नहीं है, मुझे बच्चों से प्रेम है। ये पानी पी लो और यहां बैठ जाओ शांत हो जाओ डरो मत। आंनद यह जानो कि गली-मोहल्लों में इतनी बातें मेरे खिलाफ है कि मैं कुछ कर नहीं पाया। आंनद ने माफ़ी मांगी बोला, मुझे क्षमा कर दीजिए मैं शर्मिंदा हूं फिर फौजी ने खुद बीस आम दिए और आंनद को खुशी-खुशी माफ़ किया और कहा बेटा यहां दोबारा आना। यहां मैं अकेला ही रहता हूं। चलों इस शर्त के वज़ह से तुम यहां आ पाए। उस लड़के को जिसने तुम्हें शर्त दिया है जाने देना कोई लड़ाई झगड़ा न करना। मेरा बेटा पढ़ाई-लिखाई के लिए शहर के बाहर गया है। मेरे नौकर ही देखभाल करते हैं, हवेली और मेरा। आंनद ने वादा किया कि वह आएगा और पैर छूकर आशीर्वाद लिया। छिप-छिप कर चंदन हवेली के पास आया और उसे खुश होकर हैरान हुआ। चंदन ने उसके हाथ में आम देखा और आनंद ने उसके हाथ में दस आम धर दिया और बाकी दस आम अपने पास लेकर चल दिया चंदन के कहने पर आनंद ने बताया कि "मैं तो फंसकर निकला हूं तुम्हें मिलना हो तो जाओ मिल लो सिपाही से और हंसने लगा"। चंदन और उसके दोस्त उसे देखने लगे।
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