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मेहनत का फ़ल
श्याम आज बहुत खुश हैं, गीता उसे खुश देख मन ही मन मुस्कुरा रही है और सोच रही है कि ये खुश कैसे है आज ,जिनके चेहरे पर हमेशा गंभीरता होती है ।
गीता -- जी सुनते हो , आज क्या हो गया जो बड़े मुस्कुरा रहे कहीं अच्छा काम मिला गया।
श्याम-- क्यों तुम्हें क्या , मैं आगे नहीं मुस्कुराता।

गीता -आप ओर मुस्कराहट का दूर- दूर तक का नाता नहीं , क्या मैं जानती नहीं पिछले सात साल से आपको देखती आ रही हूं और घर के हालात मुस्कराने देते भी है क्या।

श्याम -अरे भाग्यवान, चिंता न करो घर के हालात भी बदल जाएंगे , कच्ची झोंपड़ी से पक्का घर बन जायेगा। मुझे मेरी मेहनत का फल मिलेगा।

गीता --अरे कैसी मेहनत है आपकी, हालत देखी अपनी खुद की सुध -बुध तो होती नहीं आपको जब घर आते हो देखा है मैंने आपको हम ठीक इसी घर में सुकून तो है ही ,नहीं चाहिए पक्का घर जिससे आपकी हालत ऐसी हो।

श्याम ---बस करो मनहूस जैसी बातें मत करो, तुम औरतें भी अजीब होती हो , ऐसे अच्छा घर चाहिए जब हो सकता बन जाएं तो अपना दूखडा लेकर बैठ जाती। मैं मेहनत कर रहा हूं दो पैसे साथ बन जाएं और मिस्री साहब ने वादा किया है पूरा करेंगे
गीता-- बस करिए चलिए कुछ खा लो , महादेव करें आपको मेहनत का फल मिले।

गीता सब्जी बेचने जा रही है, उसका ध्यान गया तो उसने देखा जहां पर श्याम काम करता बह उधर से ही गुज़र रहा थी बह कितनी मेहनत कर रहा , दोपहर हो गयी है बाकि सब मजदूर खाना खा रहे और बह अकेला लगा हुआ है काम। गीता आगे चल पड़ी उसे भी घर जाना था

रात होने वाली है श्याम घर आ गया है, गीता चिल्ला रही है उस पर ।



गीता ----- आपका दिमाग ठीक है हालत देखी अपनी एक तो आप आधा खाना खाके आए है, आज देखा मैंने आपको सब खाना खा रहे थे आप काम कर रहे थे इतनी भी क्या मेहनत करना कि खाना ही भूल जाएं अगर दूसरे मजदूर काम कर आराम कर रहे थे आप क्यो इतनी मेहनत करते हो, कोई कुछ नहीं देखा बाद में उनको भी इतनी ही देहाडी मिलेगी जितनी आपको।

श्याम ---मै मेहनत करता हूं क्योंकि मुझे मिस्री साहब ने कहा है जितना अधिक काम करोंगे तुम्हें उसका फल जरूर मिलेगा , मैं तुम्हारी मदद करुंगा पक्का घर बनाने में।

गीता ---बस करो पता मुझे, लोग तो काम निकलने के बाद पूछते तक नहीं , जब हो आप बहा बड़ी तारीफ करेंगे काम निकलेगा तो तू कौन , मैं कौन।

श्याम ---- नहीं मिस्री साहब मेहनत समझते हैं मेरी वो तो सबको कहते हैं कि श्याम कितना मेहनती हैं इसकि फल जरूर मिलेगा इसे।


गीता --- उनको कहो पहले फल तो दो आप कब मिलेगा वो फल , आप सिर्फ बातें ही करते हो या जुवान के भी पक्के हो।


श्याम ---नही गीता वो तो बहुत अच्छे हैं , उनका हर कहा मेरी सर आंखों पर है , आज के जमाने में कौन काम देता और ऊपर से घर बनाने में भी मदद करेंगे मेरी वो, उनके लिए जितनी मेहनत लगेगी करूंगा मैं।

गीता की बहस करते करते कब आंख लग गई पता ही नहीं चला।

आज श्याम जल्दी ही काम पर जा रहा है क्योंकि आज आखिरी दिन है उसे ज्यादा मेहनत करनी है ताकि उसे ज्यादा पैसे मिले बाकि मजदूरों से ओर मिस्री साहब खुशी हो उससे ।


मिस्री साहब -- सब मजदूर अपना हिसाब देख ले आकर ओर अपने पैसे ले लें जो बनते उनके काम के ।

सबने अपना -अपना हिसाब देखा और पैसे लेकर चल पड़े अपने अपने घर को, अब श्याम की बारी आई ।

मिस्री साहब -- तुम्हारे भी बाकि मजदूरों के जितने ही दिन है सब के लगभग एक जैसे ही पैसे बने है तुम्हारे भी उतने ही है, ये लो पैसे ।

श्याम की आंखों में आसूं आ गए, उसने सोचा ज्यादा पैसे मिलेंगे ।

श्याम --- साहब आपने एक वादा किया था कि आप पक्का घर बनाने में मेरी मदद करेंगे क्योंकि मैंने बाकि से ज्यादा मेहनत की थी।


मिस्री साहब --- अरे मेरे पास इतना वक्त कहां , मैंने अब यहां से बडी दूर काम ले लिया है, तुम मेहनती हो कर लोगे कुछ , वैसे तुमने उतना हि दिन काम जितने बाकि मजदूरों ने किया तो पैसे भी उतने ही बनेंगे तुम्हारे ,ऐसे उनके साथ अन्याय होगा ज्यादा पैसे मिलेंगे तुम्हें तो।


श्याम घर आकर चुपचाप कोने में बैठा है खामोशी छाई हो जैसे हर तरफ , गीता तो खरी -खोटी सुना रही उसे।

गीता ----मिल गया मेहनत का फल , हो गई आपकी मेहनत खत्म , टूट गया पक्के घर का सपना , कहां था मैंने लोग अपना काम निकालते ,कुछ नहीं बनता जो मर्जी करो दुसरो के लिए , पर आप तो देवता मान कर बैठे ही उनको ओर मेहनत तो ऐसे करते सब हासिल कर लोगे।


गीता सुना रही है पर श्याम खामोश है जैसे कुछ मर गया हो अंदर से उसके ,उसका दिल टूट कर चकनाचूर हो गया है , शरीर तो पहले ही मेहनत करके चकनाचूर हो गया था ,पर मेहनत का फल नहीं मिल पाया उसको, वो बस खामोशी की परतों में कही गुमसुम सा हो गया है।




स्वरचित कहानी
अंजली